तो क्या ये वाकई मुसलमानों का भला चाहते हैं!
एक बार फिर देश की सबसे बड़ी पंचायत के लिए चुनाव का समय आ गया है। फिर से राजनीतिक दल घिसे-पिटे मुद्दों और जनता को बरगलाने के लिए अपने घोषणापत्र के साथ इस महासमर में हाजिर हैं। गरीब जनता को कोई दो रुपये किलो चावल देने की बात कर रहा है तो कोई सांप्रदायिकता की बात उछाल कर अल्पसंख्यक वोट हथियाने की जोर आजमाइश करता नजर आ रहा है। लबोलुआब यह कि किसी भी दल या गठबंधन के घोषणापत्र में देश के लिए भावी `विजनं या आम आदमी के लिए कुछ भी `खासं नहीं है।
इस बार के चुनाव में राष्ट्रीय दल हों या क्षेत्रीय दल सभी एक समान नजर आ रहे हैं। राष्ट्रीय दलों के पास राष्ट्र के लिए न तो कोई दुरगामी उम्दा दृष्टिकोण ही है और न ही क्षेत्रीय दलों के पास राज्य विशेष या क्षेत्र विशेष के विकास के लिए अलग खाका ही है। कुछ है भी तो पुराने वायदे और नारे।
पिछले कई चुनावों की भांति इस बार भी अधिकांश पाटिüयों के नेता मुस्लिम समुदाय का वोट हासिल करने के लिए जीतोड़ प्रयास कर रहे हैं। इस मुहिम में कुछ दलों को छोड़ दिया जाए तो पूरब से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण के राज्यों में छोटे और बड़े दलों के क्षत्रप अपने को अल्पसंख्यक (मुस्लिम) हितैषी होने का दम भरते नजर आ रहे हैं। कोई उन्हें सांप्रदायिकता का भय दिखा रहा है तो कोई उन्हें विशेष सुविधाओं की बात कह रहा है।
दरअसल, पिछले कई दशक से देश में विभिन्न पार्टियों द्वारा अपने को मुस्लिम हितैषी होने या दिखाने का प्रचलन सा चल निकला है। सच्चाई तो यह है कि कोई भी दल वोट की राजनीति से ऊपर उठ कर उनके बारे में गंभीर ही नहीं है। केवल हौव्वा खड़ा करने और एक अनजाने सा भय उनके मन में डालने के अलावा यह कुछ नहीं करते।
वैसे यह दल भूल जाते हैं कि मुस्लिम मतदाता भी उनकी चाल को अच्छी तरह से समझते हैं। मुस्लिम समुदाय को पता है कि वह किस दल या विचारधारा से जुड़ेंगे तो उनका विकास होगा। एक शिक्षित और आम मुस्लिम मतदाता इन दलों के झांसे में आने वाला नहीं है।
मुस्लिम समुदाय को समझ है कि चुनाव के दौरान उनका केवल इस्तेमाल किया जाता है। जो नहीं है उसे पेश किया जाता है। मेरे आदरणीय मित्र प्रो. हामिद अंसारी ने एक बार कहा था कि मुसलमान अब समझदार और शिक्षित हैं। उन्हें पता है कि कौन से दल उनका वाकई में भला कर सकते हैं।
ताजा घटनाक्रम को ही लिया जाए तो वरुण गांधी पर रासुका लगाने के पीछे उत्तर प्रदेश सरकार की मुस्लिम मतदाताओं को छिटकने से रोकने की कोशिश ही है। इसी तरह किशनगंज के चुनावी सभा में रेलमंत्री लालू प्रसाद द्वारा वरुण पर बुलडोजर चलवाने की बात कहना भी मुस्लिम समुदाय को खुश करने वाली ही बात है।
हद तो तब हो जाती है जब लोजपा प्रमुख द्वारा अपनी पार्टी की घोषणापत्र में आरएसएस और विहिप पर प्रतिबंध लगाने की बात कह कर इस समुदाय को रिझाने की कोशिश करते हैं। इस बात को सभी लोग जानते हैं कि जिस दल का एक राज्य में भी सरकार नहीं है और न ही उतने विधायक या एमपी ही हैं जो किसी नीति को प्रभावित कर सकें। ऐसे लोग या ऐसे दल किसी का क्या भला कर सकते हैं। यह अपना केवल उल्लू सीधा कर सकते हैं और कुछ नहीं। यह कुछ ताजातरीन उदाहरण हैं। ऐसे बहुत से दल हैं जो केवल वोट की राजनीति ही करते हैं। अब ऐसे में मुस्लिम समुदाय को निर्णय करना है कि वह केवल वोट बैंक ही बने रहेंगे या....?
April 13, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
छवि गढ़ने में नाकाम रहे पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम
कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया मामले में घूस लेने के दोषी हैं या नहीं यह तो न्यायालय...
-
हमारी संस्कृति में माता-पिता के आशीर्वाद से ही दिन की शुरुआत करने की सलाह दी गई है रविवार को भारत सहित लगभग अधिकांश देशों में पाश्चात्य सं...
-
उसके बीवी बच्चों ने धुन डाला। मैं दिल्ली के जिस मोहल्ले की गली में रहता हूं, मेरे मकान के सामने दिल्ली पुलिस के एक हेडकांस्टेबल भी अपने परि...
-
नवाबों के शहर को गांधीगीरी सिखाएंगे मुन्ना फिल्मों में लटको झटको दिखाने के बाद अब लखनऊ की जनता को गांधीगीरी सिखाने के लिए मुन्ना भाई उर्फ सं...
No comments:
Post a Comment
आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।