April 30, 2013

हम अंग्रेजों के जमाने के पुलिस वाले हैं....

फिल्म शोले में एक डॉयलॉग है ’हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं...’ अपने देश की पुलिस और पुलिस वालों की रवैया भी अंग्रेजों के जमाने के ही है; जुल्मी, आताताई, भ्रष्ट और सीधेसाधे लोगों को दबाने और तंग करने वाली; अंग्रेजों ने जिस दमनकारी पुलिस व्यवस्था का खाका खींचा था वह आज भी कुछ मामलों को छोड़कर कायम है; अंतर बस इतनाभर है कि उस समय भी पुलिसिया जुल्म सहने वाले लोग अपने होते थे पुलिस के सिपाही भी अपने देश के होते थे पर अधिकांश अफसर अंग्रेज थे; पर आज जनता वही है सिपाही अपने ही हैं और अफसर भी अपने हैं, लेकिन जुल्म ढाने के तरीके पुलिस के वही हैं; अजीब विडंबना देखिए उस समय के सिपाही निहत्थे और लाचार लोगों पर हाथ उठाने से मना कर देते थे; किंतु आज के हमारे अपने पुलिस के जवान आम लोगों पर बर्बरता ढाने में अंग्रेजों के जमाने की पुलिस को भी पीछे छोड़ दे रहे हैं; देश की सभी राज्यों की पुलिस जनता के प्रति तिरस्कृत व्यवहार करने में एक जैसी है;
दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत तमाम राज्यों की पुलिस की कार्यशैली एक जैसी है; लोगों पर लाठी बरसाने, जनता से उपर समझने, नेताओं के एजेंट की तरह कार्य करने वाले और रिश्वत लेने के लिए किसी भी हद तक जाने में पुलिस वालों को कोई गुरेज नहीं है; पुलिस झूठे मुकदमों में फंसाने में एकदम से माहिर है; पुलिस की इस रवैये पर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी एकदम ठीक है कि यहां की पुलिस के तरीके जानवरों जैसे हैं;
16 दिसंबर 2012 की घटना के बाद उपजे जनाक्रोश के बाद दिल्ली पुलिस वाले बेगुनाह दो भाइयों को फंसा तो दिए; लेकिन, बाद में पुलिस को कोर्ट में यह कहना पड़ा कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है;
कुछ दिन पहले अलीगढ़ में रेप के बाद एक बच्ची की हत्या का विरोध कर रहीं महिलाओं पर पुलिस ने कितनी बेरहमी से लाठियां बरसाईं; वहीं दिल्ली में एक एसीपी स्तर के अधिकारी ने तो एक लड़की को तो ऐसा थप्पड़ जड़ा कि उसके कान से खून तक निकल आए; हालांकि, दोनों ही मामलों में दोषी पुलिस वालों को निलंबित कर दिया गया है;
सवाल यह नहीं है कि दोषियों को दंडित किया गया या नहीं; सवाल यह है कि इस तरह की हरकत पुलिस वाले क्यों करते हैं; कुछ
घटनओं को छोड़ दिया जाए तो इस तरह के व्यवहार करने में एएसपी या उससे नीचे वाले अधिकारी या कांस्टेबल ही सबसे ज्यादे हैं; और इनमें भी सबसे ज्यादे वही हैं जो निचले लेबल से पदोन्नति पाए हैं;
दरअसल, पुलिस वालों के चिड़चिडे़पन और तनाव के लिए उनका खुद का महत्वाकांक्षा तो जिम्मेदार है ही, काम का अधिक होना आराम के लिए कम समय मिलना भी पुलिस के वर्तमान हालात के लिए जिम्मेदार है; पर्याप्त संख्या में जवानों और अधिकारियों का भर्ती न होना भी पुलिस वालों को चिड़चिड़पने का शिकार बनाता है;
पुलिस वालों को जनता के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए उन्हें समय-सयम पर प्रशिक्षण और योग आदि के कैंपों में भेजना चाहिए; साथ ही पुलिस के कामों में राजनीतिक हस्तक्षेप को पूर्णतया कम करना होगा; रिश्वतखोर और लापरवाह सिपाहियों और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने होंगे;   

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