February 5, 2009

कलंकित होता बचपन

कलंकित होता बचपन

दिल्ली में एक 13 वर्षीय बच्चे की शर्मसार कर देने वाली करतूत बच्चों की दुनिया की एक विकृत चेहरा दिखाती है। कि कैसे अब बच्चे भी हिंसा, सेक्स और नशे की तरफ तेजी से आकर्षित हो रहे हैं। यह उस वर्ग की हकीकत है जिसे केवल पढ़ने और खेल-कूद में ही अपना समय बिताना चाहिए। लेकिन, हो इसके उल्ट रहा है। पिछले दो-तीन दिनों के अंदर दिल्ली में बच्चों द्वारा कुछ ऐसी घटनाएं की गईं हैं जिसे सुनकर सहसा विश्वास नहीं होता की इस उम्र में बच्चे भी ऐसी हरकतें कर सकते हैं। दिल्ली की गोविंदपुर में रहने वाले एक 13 साल के लड़के ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दी। उसने एक फरवरी को अपने ही पड़ोस में रहने वाली एक पांच वर्ष की मासूम को न केवल अपने हवस का शिकार बनाया, बल्कि उसके संवेदनशील अंगों पर ब्लेड से वार कर उसे जख्मी भी कर दिया। वारदात से पहले उसने थिनर का सेवन किया था, जब नशा चढ़ गई तो उसने इस घटना को अंजाम दे डाला। हालांकि, बच्ची की रोने की आवाज सुनकर लोगों ने उस लड़के को जमकर धुनाई कर पुलिस को सौंप दिया। जिसे अदालत ने बाल सुधार गृह में भेज दिया। इसके अलावा दूसरी घटना भी कम रोंगटे खड़ा करने वाली नहीं है। क्रिकेट खेलने के दौरान बात न मानने और मामूली विवाद पर एक लड़के ने एक पांच वर्षीय बच्चे की गर्दन पर चाकू से वार कर दी जिससे गर्दन की नस कट जाने से उस मासूम की मौत हो गई। उसको भी अदालत द्वारा बाल सुधारगृह में भेज दिया गया है। ये दोनों घटनाएं बच्चों में भी बढ़ती आपराधिक प्रवृत्ति को दर्शाने के लिए काफी हैं। वैसे ऐसी कई घटनाएं हैं जो प्रकाश में नहीं आतीं हैं। बच्चों में बढ़ रही इस तरह की प्रवृत्ति के लिए किसे जिम्मेदार माना जाना चाहिए? यह गंभीर चिंतन और मनन का विषय है।

फौरी तौर पर देखा जाए तो इस प्रकार की प्रवृत्ति के लिए घरेलू वातावरण और आस-पास का सामाजिक वातावरण ही मुख्य रूप से जिम्मेदार है। क्योंकि अच्छी या बुरी आदतें जो भी हैं उसे हम अपने घर और आस-पास के वातावरण से ही तो सीखते हैं। ऐसा नहीं है कि दोनों घटनाओं में बच्चों का पारिवारिक पृष्ठभूमि आपराधिक प्रवृçत्त का रहा हो, लेकिन संबंधित परिवार अपनी जवाबदेही से बच भी तो नहीं सकता। क्योंकि बच्चों में इस तरह की प्रवृत्ति कहीं न कहीं उनको अपने घरों से मिली आजादी को ही दिखाती है। उनकी हरकतों और गतिविधियों को नजरअंदाज करने का ही उक्त परिणाम है। बच्चों द्वारा गलती करने पर भी गलती को दबाने की कोशिश अभिभावकों द्वारा की जाती है। आज माता-पिता अपने बच्चों पर लगाम कसने में पूरी तरह सफल नहीं हो रहे हैं। बच्चे उनकी कमजोरियों का लाभ उठाकर गलत रास्तों पर जा रहे हैं। अभिभावक यह नहीं देखते की उनके बच्चे क्या कर रहे हैं? बच्चों को उचित `स्पेश´ देने की मानसिकता ही बच्चों को गलत रास्तों पर ले जा रही है।

दूसरी तरफ कम उम्र में ही बच्चों में सेक्स की तरफ आकर्षण तेजी से बढ़ रहा है। इसके लिए हमारा सिनेमाई और टेलीविजन संस्कृति जिम्मेदार है। सिनेमा और टीवी पर दिखाए जा रहे अश्लील दृश्य बच्चों के मन पर गलत प्रभाव डाल रहे हैं। बहुत सारे चैनलों पर ऐसे धारावाहिक दिखाए जा रहे हैं। जो बड़ों के मन में भी गलत प्रभाव डालते हैं, खैर बच्चे तो बच्चे ही हैं। जब बच्चे इन अश्लील दृश्यों को पर्दे या टीवी पर देखते हैं तो उनके मन में उन दृश्यों को हकीकत में भी देखने की तीव्र जिज्ञासा पनपती है, और यहीं से शुरू हो जाता है उनका गलत रास्तों पर जाने का सिलसिला। मारधाड़ और हीरो की तरह एक्टिंग करने की लालसा भी बच्चों में टीवी और सिनेमा से ही उत्पन्न होती है। और ये वास्तविक जीवन में वैसा करके देखना चाहते हैं।

पहले संयुक्त परिवारों में बड़े-बुजुर्ग बच्चों की हरकतों पर नजर रखते थे। लेकिन, अब शहरी एकाकी परिवारों में माता-पिता अपने बच्चों की हरकतों पर ईमानदारी से नजर नहीं रख पा रहे हैं। यही वजह है कि छोटी उम्र में ही बच्चे बड़ों की तरह कारनामे करने लगे हैं।

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