August 30, 2009

काफी मुनाफा है मिलावट के धंधे में

मृत्युदंड मिले मिलावटखोरों और जमाखोरों को

क्या हो रहा है अपने देश में? चारों तरफ लूट खसोट और बेइमानी का बोलबाला है। आतंकवाद, अलगाववाद और नक्सलवाद से तो लोग जूझ ही रहे थे कि वर्षों पुराना मर्ज मिलावट और जमाखोरी फिर से जनता को परेशान करना शुरू कर दिया है। लेकिन, सरकारें यह तय नहीं कर पा रही हैं कि इनसे कैसे सख्ती से निपटा जाए। केंद्र और राज्य सरकारों के पास इन पर लगाम लगाने के लिए न तो दृढ़इच्छाशक्ति ही है और न ही कोई दूरदर्शी योजना। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव देश की गरीब जनता को भुगतना पड़ रहा है।



आतंकवाद तो बाहर से प्रायोजित है जिसका मकसद ही बबाüदी और तबाही है, लेकिन जमाखोरी और मिलावट के माध्यम से देश के अंदर देश को खोखला करने की साजिश हो रही है। क्योंकि, मिलावटी खाद्य पदार्थों से लोग आंतरिक और बाह्य रूप से प्रभावित होते हैं। यह एक तरह से स्वीट प्वॉइजन है जो धीरे-धीरे अपना असर दिखाता है।


इन दिनों लगभग रोज ही मिलावट और जमाखोरी के मामले अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बन रहे हैं। 22 अगस्त को गाजियाबाद में नकली घी और चाय बनाने की फैक्टरी का पर्दाफाश किया गया है । कई लोग इस मामले में गिरफ्तार किए गए हैं। इसके पूर्व मेरठ में भी नकली देशी घी बनाने की फैक्टरी का भंडाफोड़ हो चुका है। यहां पर शुद्ध देशी घी के नाम पर जानवरों की चर्बी और अन्य तेलों को मिलाकर घी तैयार किया जा रहा था। यहीं नहीं देशी घी के नाम पर लोगों की आंख में धूल झोंकने के मामले का उजागर राजस्थान, हरियाणा और मध्यप्रदेश के जबलपुर में भी हो चुका है। हद तो तब हो गई जब हरियाणा के हिसार, कैथल और करनाल जिलों में सबजियों को समय पूर्व विकसित करने के लिए इंजेक्शन लगाने और दवाओं का प्रयोग करने का मामला प्रकाश में आया।


दूसरी तरफ जमाखोरों की भी पौ बारह है। खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ रहे हैं उसका एक सबसे बड़ा कारण जमाखोरी है। बड़े और छोटे सेठ-साहूकार वस्तुओं को जमा कर कृत्रिम कमी पैदा कर दे रहे हैं जिससे महंगाई बढ़ने लगती है। बाद में वे अपना स्टॉक बाजार में ऊंचे दामों पर बेच कर जनता की गाढ़ी कमाई ऐंठ लेते हैं। छत्तीसगढ़ में 23 अगस्त को दस करोड़ रुपये की दालें जब्त की गई हैं। इसके पूर्व मध्यप्रदेश में करोड़ों के चावल जब्त किए गए हैं। देश में ऐसे अनगिनत मामले हैं जिन तक किसी की नजर नहीं पहुंच पाती है।



यही नहीं अब यह नौबत आ गई है कि मुनाफे के लिए असामाजिक तत्व खून में मिलावट करने से भी नहीं हिचक रहे हैं। पिछले दिन लखनऊ में मिलावटी खून बेचने वाले रैकेट का पर्दाफाश होना तो कुछ अलग ही कहानी बयां करता है। अब लोग करें तो करें क्या? लखनऊ में पकड़ा गया रैकेट इंसानों के खून में जानवरों का खून मिलाकर 900 से 1500 रुपये तक में बेच रहा था। लगता है लोगों की जमीर ही खत्म हो गई है। पैसे के लिए ऐसे लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं। सच तो यह कि ऐसे लोगों की कोई हद ही नहीं है।




इस तरह के मामलों की फेहरिस्त लंबी है। कुछ लोग गिरफतार भी किए जा रहे हैं। फिर भी इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। वहज भी आईने की मानिन्द साफ है, लोगों में मौजूदा कानून का खौफ ही नहीं है। या स्पष्ट कहें तो इन मिलावटखोरों और जमाखोरों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई ही नहीं की जाती। क्योंकि, जो धंधों के मुखिया हैं उन्हें कहीं न कहीं नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस से संरक्षण प्राप्त है।


दरअसल, मौजूदा कानून को और सख्त बनाने की जरूरत है। ऐसे लोगों में कानून का भय ही नहीं रह गया है। इनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि दूसरे ऐसे लोग सबक लें सकें। सबसे बड़े देशद्रोही तो यही हैं, क्योंकि, ऐसे लोग जनता के दिलो-दिमाग को कुंद करते हैं। यह लोग माफी अथवा कम सजा के हकदार नहीं हो सकते हैं। कुछ लोगों को केवल गिरफतार कर लेने और एफआईआर दर्ज करन े भर से कुछ नहीं होने वाला है। तह में जाकर पड़ताल करनी होगी और आरोपियों को मृत्युदंड से कम सजा मिलनी ही नहीं चाहिए। ऐसे मामलों के लिए सरकार को अलग से न्यायालयों का गठन करना चाहिए, जहां द्रुत गति से मामलों का निपटारा कर आरोपियों को सजा मिल सके।

August 23, 2009

रेलवे को क्षति पहुंचाना शगल बन गया है

सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने वालों पर कठोर कार्रवाई हो


सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना लोगों के लिए शगल बन गया है। छोटी-छोटी बातों के लिए लोग राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। आजकल देश में अपनी मांगें मनवाने के लिए सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाना लोगों को सबसे आसान और उपयुक्त लगता है। लोगों को लगता है कि यह सब करके वे सरकार से अपनी गलत बातों को भी मनवा लेंगे, लेकिन वह भूल जाते हैं कि सरकारी संपत्ति जनता की अपनी संपत्ति है और इसे नुकसान पहुंचा कर हम अपना नुकसान ही तो कर रहे हैं। क्योंकि, सरकार जो पैसा दूसरे विकासात्मक कार्यों पर लगाती वह पैसा नष्ट हुई संपत्ति पर लगाना पड़ता है। ऐसे में किसका नुकसान हुआ?



लोगों के गुस्से का सर्वाधिक शिकार देश की जीवन रेखा रेलवे ही हुई है। ट्रेनों की बोगियों में आग लगा देना, रेलवे स्टेशनों में तोड़फोड़ करना तो मानो आम बात हो गई है। हर बात पर लोग ट्रेनों के चक्के जाम कर देते हैं या कोचों में आग लगा देते हैं, इससे सरकार को लाखों-करोड़ों का नुकसान होता है।



आजादी के बाद से बिहार से ही ज्यादातर रेलवे मंत्री बने हैं। यह विडंबना ही है कि बिहार में ही रेलवे को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया जाता है। आए दिन लोग या नक्सली रेलवे को क्षति पहुंचाते रहते हैं। पिछले सात-आठ महीने के रिकार्ड को देखा जाए तो सर्वाधिक नुकसान रेलवे को बिहार में पहुंचाया गया है।




पिछले दिन बिहटा रेलवे स्टेशन के पास जिस तरह से छात्रों ने आरक्षित सीटों पर बैठने को लेकर श्रमजीवी एक्सप्रेस की एसी बोगियों में आग लगा दी बहुत ही दुखद है। जो छात्र देश के भविष्य हैं वे राष्ट्रीय संपत्ति को क्षति पहुंचाने में जरा सा भी देर नहीं लगाते हैं, इससे ज्यादा राष्ट्रीय शर्मनाक और क्या हो सकता है। उसी दिन लखीसराय स्टेशन पर भी लोगों ने एक और ट्रेन को आग लगा दी। कुछ दिन पहले ही दानापुर-सहरसा इंटरसिटी में भी आग लगा दी गई थी।



रेल मंत्री ममता बनर्जी ने रेलवे भरती में स्थानीय लोगों को 50 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी तो नाराज छात्रों ने बाढ़ रेलवे स्टेशन पर खड़ी एक पैसेंजर ट्रेन को आग लगा दी थी। इस घटना के अगले दिन अथमलगोला रेलवे स्टेशन पर भी छात्रों ने कोसी एक्सप्रेस में आगजनी की कोशिश की। यही नहीं बिहार में बने कई अवैध हाल्टों को हटाने के आदेश पर भी लोगों ने रेलवे को नुकसान पहुंचाया था।




पिछले वर्ष मुंबई में उत्तर भारतीयों की कथित पिटाई तथा राहुल राज नाम के युवक की पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में मौत के बाद कई दिनों तक छात्रों ने रेलवे को निशाना बनाया था। 26 अक्टूबर 2008 को बाढ़ रेलवे स्टेशन पर खड़ी साउथ बिहार ट्रेन में छात्रों ने आग लगा दी। इस घटना में ट्रेन की दो एसी बोगियां जलकर राख हो गई थीं। इससे तीन दिन पूर्व 23 अक्टूबर को परीक्षार्थियों ने सोनपुर मंडल के बापूधाम मोतिहारी स्टेशन पर जमकर उत्पात मचाया था।



इसी तरह 21 अक्टूबर को मुंबई से परीक्षा देकर लौटे छात्रों ने पटना जंक्शन पर जमकर तोड़फोड़ की थी। जंक्शन से गुजरने वाली ट्रेनों में पटना-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस समेत चार दर्जन से ज्यादा ट्रेनों को रद्द करना पड़ा था। (यह रेलवे पुलिस में दर्ज मामलों से लिए गए हैं )



यह तो रही छात्रों और बिहार की बात। लेकिन देश के अन्यत्र हिस्सों में भी रेलवे को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं बढ़ी हैं। राजस्थान में आरक्षण की मांग को लेकर किए जा रहे आंदोलन के दौरान भी ट्रैक पर धरने पर बैठ कर लोगों ने रेलवे का आवागमन कई दिनों तक ठप कर दिया था, जिससे करोड़ों की राजस्व की क्षति हुई थी साथ ही लोगों को भी भारी असुविधाओं का सामना करना पड़ा था।




दरअसल, देश में कानून का कड़ाई से पालन न होना भी सरकारी संपçत्त को नुकसान पहुंचाए जाने का एक बड़ा कारण है। यदि रेलवे अथवा किसी भी सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने वालों के विरुद्ध कठोरता से पेश आया जाता तो लोग ऐसा करने से बाज आते, लेकिन ऐसा होता नहीं। केंद्र सरकार कानून व्यवस्था राज्य का मामला बता कर कार्रवाई करने से पीछे हट जाती है। राज्य सरकारें रेलवे को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले अपने वोट बैंक के नफा-नुकसान का हिसाब लगाने लगती हैं। उन्हें लगता है कि कार्रवाई करने के मामले को कहीं विपक्ष क्वमुद्दां न बना दे। इस तरह से रेलवे को नुकसान पहुंचाने वालों के हौसले बुलंद होते जाते हैं। उन्हें लगता है कि कुछ भी करो कुछ होने वाला नहीं है।



मुझे याद है, वर्ष 2000 में मेरे गृह जनपद गाजीपुर के दिलदारनगर जंक्शन पर अपर इंडिया के कई बोगियों में उपद्रवी तत्त्वों ने आग लगा दी थी। मैं भी उस दिन ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पर ही मौजूद था। ट्रेन को फूंकने वाले लोगों के विरुद्ध मामले दर्ज हुए, लेकिन कार्रवाई आजतक नहीं हुई। ऐसा नहीं है कि पुलिस उन उपद्रवियों को नहीं जानती है। सबकुछ के बावजूद सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने वाले आज भी स्टेशन पर घूमते हुए दिख जाएंगे, लेकिन पुलिस और प्रशासन को नहीं दिखेंगे। क्योंकि, दुर्भाग्य से वे एक पार्टी विशेष से संबंध रखते हैं और पार्टी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने देती।




विश्व में कहीं भी रेलवे को नुकसान को पहुंचाने की घटनाएं संभवतः नहीं होती हैं, लेकिन अपने महान देश के महान लोग ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में अपना गर्व समझते हैं। उन्हें लगता है कि रेल ही एक जरीया जिससे वे अपनी बात मनवा सकते हैं।




दरअसल, हम लोग अभी भी एक अच्छे और जनतांत्रिक नागरिक के गुणों को विकसित नहीं कर पाए हैं। हम लोगों में सिविक सेंस ही नहीं है। यदि सिविक सेंस होती तो ऐसी घटनायें नहीं होतीं। क्या पश्चिम में या विकसित देशों में अपनी मांगों को लेकर लोग आंदोलन नहीं करते हैं? वहां भी आंदोलन होता है, लेकिन अपने देश जैसा नहीं।


अब समय आ गया है कि देश के कानूनी ढांचा को बदल कर कुछ मामलों में एक संघीय कानून बनाया जाए। सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने वालों या राष्ट्रीयता को नुकसान पहुंचाने वालों के विरुद्ध सीधे राष्ट्रीय स्तर पर कठोरतम कार्रवाई की जाए। ढुलमुल रवैये से अब काम चलने वाला नहीं है।

छवि गढ़ने में नाकाम रहे पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया मामले में घूस लेने के दोषी हैं या नहीं यह तो न्यायालय...