January 10, 2009

मेरा पड़ोसी

उसके बीवी बच्चों ने धुन डाला।

मैं दिल्ली के जिस मोहल्ले की गली में रहता हूं, मेरे मकान के सामने दिल्ली पुलिस के एक हेडकांस्टेबल भी अपने परिवार के साथ रहते हैं। मैं जब इस मकान में रहने आया तो पहली नजर में उस हेडकांस्टेबल को देख कर मुझे लगा कि वह घर का नौकर है या मकान मरम्मत करने वाला कोई राजमिस्त्री। लेकिन बाद में पता चला कि वह तो घर का मालिक है।

यही नहीं मैं जिस घर में रहता हूं। वह उसी का था, जिसे उसने मेरे मकान मालिक को बेच दिया था। वह हेडकांस्टेबल सुबह चार बजे उठ जाता है और देर रात तक मकान में तोड़फोड़ या मरम्मत करता रहता है। उसके इस कार्य से और लोगों को कोई दिक्कत होती है कि नहीं मैं यह तो नहीं जानता लेकिन मुझे बहुत परेशानी होती है।

हालांकि, मैं केवल मन ही मन उसके प्रति गुस्सा रखता हूं। कुछ कहता नहीं हूं। इस लिए नहीं कि वह पुलिस वाला है, बल्कि इस लिए कि वह बहुत बदतमीज किस्म का इंसान है। उसके परिवार में फिलहाल कुल पांच प्राणी हैं। पति-पत्नी एक बेटा और तीन बेटियां। एक बेटी और है। जो उसके बच्चों में वह सबसे बड़ी है। लोगों का कहना है कि वह मोहल्ले के ही एक लड़के से प्रेम करती थी और अपने घर वालों के मर्जी के विरुद्ध उससे शादी कर ली थी। शुरू में तो घर वाले नाराज जरूर हुए लेकिन बाद में सब सामान्य हो गया और वह अब अपने मायके आती जाती है।

उस हेडकांस्टेबल को गली वाले पागल कहते हैं। उसके परिवार वाले भी उसे पागल ही मानते हैं। उसका इलाज भी चल रहा है। वह शराब का भी शौक रखता है। इन दिनों वह मेडिकल लीव पर है, और डियूटी नहीं जाता है। तनख्वाह मिलने वाले दिन उसकी पत्नी जा कर पैसा ले लेती है। कुछ पैसा उसे खर्च के लिए किसी तरह मिल जाता है। इन पैसों को वह शराब आदि में खर्च कर देता है। घर का वातावरण देखने से लगता है कि उसका घर वालों से सामंजस्य नहीं बैठता है। किसी से वह बात नहीं करता है।

पिछले साल के आखिरी महीने के एक दिन वह शाम के समय शराब पी कर आया और किसी बात पर अपनी द्वितीय क्रम की लड़की को चांटा मार दिया। उसने उसे कई बार चांटा मारा। शुरू में तो लड़की कुछ बोली नहीं लेकिन बाद में वह विरोध पर उतर आई। अपने जन्मदाता पिता को वह भी एक तमाचा जड़ दिया। इतने में उसकी पत्नी और उसका बेटा और छोटी वाली बेटी भी आ गई। इसके बाद तो शुरू हो गया रिश्तों के खून करने का दौर, और दिखने लगा तथाकथित शहरी होने का उदाहरण। उसके बेटे ने उसका गिरेबां पकड़ कर उसे पटक दिया।

उसकी पत्नी जो उसके लिए परमेश्वर होना चाहिए था अपनी दोनों बेटियों के साथ पिटना शुरू कर दिया और तब तक पिटती रहीं जब-तक की वह निढाल नहीं हो गया। वह मोहल्ले वालों से मदद की गुहार लगाता रहा, लेकिन कोई मदद को नहीं आया। बाद में उसके घर वालों ने अपने एक परिचित मेडिकल स्टोर वाले को बुला कर बेहोशी का इंजेक्शन लगवा दिया। हालांकि, वह दूसरे दिन सामान्य दिनों की तरह अपने काम पर लगा गया था। लेकिन आज के रिश्तों की आधुनिकता की झलक उसने दिखा दी। इन दिनों मेरी मां गांव से आईं हुईं हैं।

इस घटना पर उनका कहना था कि यहां के लोग कैसे हैं मदद के लिए बुलाने पर भी नहीं आते। मैं उन्हें कैसे बताता कि यह गांव नहीं शहर है! बाद में मैं भी उस हेडकांस्टेबल को पागल मानने लगा। मुझे लगता है कि शायद आप भी उसे पागल मानने लगें। क्योंकि उसने अपनी सारी चल-अचल संपत्ति अपनी पत्नी के नाम कर दी है। या यों कहें कि उसके घर वालों ने उससे जबरिया लिखवा ली है। क्या अब समाज की यही हकीकत होने जा रही है। यदि वह अपनी संपत्ति को अपने पास रखता तो उसकी कम से कम यह हालत नहीं होती। उसके घर वाले उसकी पिटाई नहीं करते। थोड़ी बहुत इज्ज्त करते और वह मालिक की तरह घर में रहता। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और अब वह बीवी बच्चों से मार खाने के बाद जलालत की जिंदगी गुजार रहा है। मुझे लगता है कि आदमी को अपने पांव में उसके तरह कुलहाड़ी नहीं मारनी चाहिए।

5 comments:

  1. ब्लोगिंग की दुनिया में स्वागत है बंधू चपल रहा

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  2. ब्लोगिंग की दुनिया में स्वागत है बंधू चपल रहा

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  3. जों इंसान सुबह शाम शराब मैं डूबा रहे, काम पर न जाए, उपर से घर आकर बीवी बच्‍चों को मारे पीटे एक ऐसे इंसान को आप बेचारा कहना चाहते है।

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  4. kamal h bhai ese mahapurush

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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

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