November 3, 2009

यह तो जेब काटने वाला कांग्रेसी हाथ है

डीटीसी बसों का किराया बढ़ाकर दिल्ली सरकार अपनी नाकामयाबी ढक रही है

दिल्ली सरकार ने डीटीसी बसों का किराया बढ़ाकर एक बार फिर आम आदमी की जेब ढीली कर दी है। कांग्रेसी बड़े गर्व से कहते हैं कि कांग्रेस का हाथ आम आदमी के साथ। लेकिन यह हाथ जनकल्याण के लिए नहीं लोगों की जेब काटने के लिए लगता है। यह कैसा हाथ है जो मध्यम वर्ग और गरीबों का केवल कान ही ऐंठने का काम करता है। यही नहीं अगले साल से दिल्ली में पेयजल भी महंगा हो जाएगा। दिल्ली मेट्रो ने पहले ही किराया बढ़ाकर जन हितैषी होने का प्रमाण दे दिया है। अब तो मदर डेयरी के दुग्ध के दाम भी बढ़ गए हैं। बिजली भी महंगी हो गई है। ऐसे में आम आदमी अपना सिर पीटने के अलावा और क्या करे। शीला दीक्षित को एक बार फिर से मौका देने वाले दिल्ली वालों को उनकी सरकार का विरोध करने का भी हक नहीं बनता। कांग्रेस के कार्यकाल में चारों तरफ महंगाई ही महंगाई है। हालांकि, भाजपा सहित विरोधी दल महंगाई और बसों के किराया बढ़ाने का विरोध तो कर रहे हैं, लेकिन, एक हताश और थके हुए विपक्ष की बात कितनी सुनी जाएगी यह अंदाजा लगाना कठिन नही है।

किराया बढ़ाने के मुद्दे पर मुख्यमंत्री  ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम के दौरान कहा था कि उनके पास नोट छापने वाली मशीन नहीं है। क्या मुख्यमंत्री सरीखे शख्सियतों से यही उम्मीद की जा सकती है? यह ठीक है कि सरकार की अपनी कुछ परेशानियां होती हैं। लेकिन अपनी नाकामयाबियों को छुपाने के लिए आप गरीबों और आम आदमी का गिरेबां तो नहीं पकड़ लेंगे। हर मर्ज के लिए बली का बकरा जनता को ही तो नहीं बनाया जा सकता।

डीटीसी का घाटा किराया कम होने से नहीं हुआ है। बल्की निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार और बुनियादी ढांचा का सही इस्तेमाल न होना है। डीटीसी में ऊपर से लेकर नीचे तक भ्रष्टाचार चरम पर है। दिल्ली सरकार का परिवहन मंत्रालय और निगम की अदूरदर्शिता और लापरवाही से डीटीसी का दिवाला निकल गया है। अक्सर डीटीसी की बसें पीक ऑवर में भी डिपो से नहीं निकलती हैं। सुबह और शाम को ही डीटीसी की बसों को चलाया जाए तो कम से इतना घाटा तो नहीं होगा जितना प्रचारित किया जा रहा है। बसें चलती भी हैं तो चालक स्टैंडों पर बसें नहीं रोकते हैं। यदि रोक भी दें सवारियां भरने से पहले ही बसें भगा ले जाते हैं। यही नहीं डीटीसी के चालक बसों को ब्लू लाइन बसों के पीछे ले जाते हैं। ऐसे में सवारियां पहले ब्लू लाइन बसों में ही बैठ जाती हैं। दूसरे डीटीसी की बसों का कोई निर्धारित समय भी नहीं होता है कि लोग प्रतीक्षा कर सकें। पता चला कि आप बस की प्रतीक्षा ही करते रह गए और आपका समय बर्बाद  हो गया और बस आई भी नहीं।

यही नहीं डीटीसी बसों के अधिकतर कंडक्टर एकदम से लालची होते हैं। चंद रुपयों के लिए उतरते वक्त सवारियों से टिकट ले लेते हैं और बाद में वही टिकट दूसरे यात्री को देकर पैसा अपने पास रख लेते हैं। अक्सर तो कम दूरी का टिकट भी नहीं देते हैं केवल पैसा ही ले लेते हैं। ऐसे में डीटीसी को घाटा नहीं तो क्या होगा?

डीटीसी के पास प्रशिक्षित चालकों और परिचालकों की भारी कमी है। जो कर्मचारी हैं भी तो दूसरे गैर जरूरी कामों में लगाए गए हैं। कर्मचारियों की कमी से भी बसें डिपो से बाहर नहीं निकल पाती हैं। जिससे सभी बसों का इस्तेमाल नहीं हो पाता। कुछ देर के लिए डीटीसी का किराया बढ़ाना मजबूरी मान भी लिया जाए तो ब्लू लाइन बसों का किराया बढ़ाने का क्या तुक है। ब्लू लाइन कंडक्टर पहले से ही कम दूरी की निर्धारित किराया से अधिक वसूलते हैं। उनकी तो बैठे-बिठाये मौज हो गई।

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