October 25, 2009

यह कांग्रेस की जीत तो कतई नहीं है

विकल्पहीनता की स्थिति में जनता ने कांग्रेस को वोट दिया

तीन राज्यों की विधानसभा चुनाव में मिली जीत का श्रेय कांग्रेसियों और कुछ कांग्रेसप्रस्त मीडिया संस्थानों ने सोनिया और राहुल गांधी के कुशल नेतृत्व और मार्गदर्शन को दिया है। जबकि, कुछ कांग्रेसी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की कुशल नीतियों को भी जीत का एक बड़ा कारण मानते हैं। वैसे, राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार तीनों राज्यों में कांग्रेस की जीत को एकदम से स्वीकार कर लेना पक्षपात होगा, क्योंकि, इन राज्यों में विपक्ष एकदम से दीशाहीनता और किंकर्तव्यबिमूढ़ता की स्थिति में रहा है। विपक्ष के पास जनता के भरोसे लायक कोई मुद्दा ही नहीं था। प्रचार अभियान के दौरान पार्टियों में आक्रामकता था ही नहीं। सभी दल थके और अवसादग्रस्त नजर आ रहे थे।



22 अक्टूबर को जैसे-जैसे चुनाव के नतीजे आ रहे थे वैसे-वैसे टीवी चैनलों के रिपोर्टर और चुनाव विश्लेषक अपने तरीके से जनता की भावनाओं का ब्याख्या कर रहे थे। कोई इसे कांग्रेस की नीतियों और स्थानीय कांग्रेसी सरकारों की जनकल्याणकारी कार्यों की जीत बता रहा था तो कोई देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भाजपा के खात्मे की भविष्यवाणी कर रहा था। सबकी अपनी डफली अपना राग। मतलब सच्चाई से कोसों दूर।



तीनों राज्यों के चुनाव परिणामों को देखा जाए तो निर्विवाद रूप से जनता ने कांग्रेस को विकल्पहीनता की अवस्था में ही वोट दिया है। जनता विपक्षी पार्टियों को भरोसे के लायक या कह कहना ज्यादा समीचीन जान पड़ता है कि जनता किसी भी विरोधी पार्टी को पांच साल तक सरकार चलाने लायक ही नहीं समझा। लोगों ने न तो सोनिया या राहुल की बातों को सुनकर वोट दिया और न ही प्रधानमंत्री के तथाकथित कुशल नेतृत्व को, बल्कि, जनता ने यह सोचकर कांग्रेस को वोट दिया कि अगले पांच सालों तक केंद्र में कांग्रेस की ही सरकार रहेगी ऐसे में प्रदेशों में कांग्रेस की सरकारें बनने पर प्रदेशवासियों को भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ जरूर मिलेगा।



इससे स्पष्ट होता है कि जनता अभी भी राहुल सोनिया को अपना नेता नहीं मानती। यदि ऐसा होता तो निश्चित रूप से महाराष्ट्र और हरियाणा में भी कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला होता। मतदाताओं ने कांग्रेसी नारा आम आदमी के साथ कांग्रेस का हाथ की हवा निकाल दी। हालांकि, अरूणांचल प्रदेश में कांग्रेस को जनता ने जरूर हाथों-हाथ लिया है। इसका कारण मात्र विपक्ष की अनुपस्थिति ही थी। वहां पर टीमएसी और एनसीपी को तो कांग्रेस का पार्टनर ही माना जाना चाहिए, क्योंकि दोनों पाटिüयां केंद्र सरकार में साझीदार हैं। रही बात भाजपा की तो वहां पार्टी का कोई अस्तित्व ही नहीं है। कुछ सीटें भाजपा को मिलना महज संयोग ही कहा जाएगा।




महाराष्ट्र और हरियाणा में अपने कार्यकाल में कांग्रेस की सरकारों ने कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है। महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याएं जारी हैं तो उत्तरभारतियों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। पेयजल और बरसात में जलनिकासी की कोई व्यवस्था नहीं कराई गई है। शहरी क्षेत्रों को छोड़ दिया जाए तो ग्रामीण इलाकों में लोगों की परेशानियां बढ़ी हैं। वहीं, हरियाणा में बिजली कटौती और पेयजल की किल्लत से लोगों का बुरा हाल है। हालात तो यह है कि प्रदेश में सिंचाई की व्यवस्था एकदम से चरमरा गई है। अर्थव्यवस्था का आधार कृषि के लिए राज्य सरकार ने कोई अलग से नीति घोषित नहीं की है। अपराध का ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। यह अलग बात है कि भूपेंद्र ¨सह हुड्डा 40 साल में जैसा विकास नहीं हुआ वैसा विकास करने का दावा कर रहे हैं। जनता ने उनके इस दावे को पूरी तरह से नकार दी है।


दरअसल, इन प्रदेशों में विरोधी पार्टियाँ अपना प्रभाव जनता पर नहीं छोड़ पाईं हैं। यह कहना गलत नहीं होगा कि विपक्ष जनता में यह भरोसा ही पैदा नहीं कर पाया कि वह कांग्रेस से ज्यादे टिकाऊ और कल्याणकारी सरकार दे सकता है। विरोधी पार्टियाँ अपनों से ही निपटने की रणनीति बनाती रह गईं। संबंधित राज्य सरकारों की खामियों को जनता के सामने उम्दा तरीके से विपक्ष पेश नहीं कर सका। महाराष्ट्र में शिवसेना राजठाकरे से बाहर निकल ही नहीं पाई तो भाजपा उद्धव राज के झगड़े को ही देखती ही रह गई। भाजपा विपक्ष का तेवर दिखा पाने में नाकाम रही। सरकार की तमाम गलतियों को जोरदार तरीके से भाजपा गठबंधन उठा पाने में असफल रहा। हरियाणा में अंत तक भाजपा गठबंधन को लेकर ही द्वंद्व में रही। यदि वहां चौटाला या भजनलाल की पार्टी से गठबंधन किया गया होता तो निश्चित तौर पर यह गठबंधन कामयाब रहता।



बहरहाल, जिस तरह से देश में कांग्रेस को सर्वमान्य पार्टी और सोनिया-राहुल गांधी को सर्वमान्य नेता बनाने की कुछ मीडिया घरानों द्वारा माहौल तैयार किया जा रहा है। वह लोकतंत्र के लिए खतरनारक है। एक परिपक्व और स्थाई लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना बेहद जरूरी है। विपक्ष सरकार की गलत नीतियों को उठाकर जन कल्याण के लिए योजनाएं बनाने के लिए सरकार को बाध्य कर सकता है। लेकिन, दुर्भाग्य से इस समय मुख्य विपक्षी पार्टी अंतर्कलह से गुजर रही है। देश की जनता भाजपा से यह उम्मीद करती है कि वह एक दमदार और आक्रामक विपक्ष के रूप में फिर से खड़ा हो।







October 14, 2009

चीन को उसी के लहजे में जवाब देना होगा


ड्रैगन को ललकारे भारत
 
लगता है अब चीन भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य महत्वपूर्ण शख्सियतों का दौरा निर्धारित करेगा कि उन्हें अपने देश में कहां भ्रमण करना चाहिए और कहां नहीं। चुनाव प्रचार के लिए प्रधानमंत्री द्वारा अरुणांचल प्रदेश का दौरा करने पर चीन ने जिस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त किया है वह संप्रभुता संपन्न राष्ट्र के अखंडता पर सीधा चोट है। भारत को केवल गहरी नाराजगी जता कर ही संतोष नहीं कर लेना चाहिए। भारत जब तक कठोरता से और   दोटूक जवाब नहीं देगा तब तक चीन इस तरह की ओछी हरकतें करता रहेगा। हालांकि, चीन के राजदूत को तलब किया गया है जो केवल रश्म अदायगी भर ही लगता है।




चीन की दुस्साहस अब हद से आगे बढ़ने लगी है। यदि भारत इसी तरह से रश्म अदायगी के लिए क्वगहरी नाराजगी जताता रहा तो चीन कल को उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत को विवादित जोन बताते हुए उस पर अपना हक जताने लगेगा। भारत का शीर्ष नेतृत्व सिर्फ नाराजगी जता कर ही रह जाएगा।




इस मामले में वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी का यह कहना कि चीन इस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करता रहता है, महज अपनी कमजोरी या दब्बूपन दिखाना है। चीन द्वारा कब्जा की गई जमीन को जब तक लेने के लिए कूटनीतिक प्रयास नहीं किया जाएगा तब तक ऐसी हरकतें पड़ोसी देश करता रहेगा। अरुणांचल प्रदेश भारत का है उसके लिए किसी से प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं है। वैसे भी अरुणांचल को हमारे प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में सूर्य का देश माना गया है। ऐसे में कोई कैसे कह देगा वह भारत का नहीं विवादित क्षेत्र है।




दरअसल, कुछ विदेशी ताकतों का यह षड्यंत्र है कि भारत को चौतरफा उलझा कर रखा जाए। यही वजह है कि नेपाल में भी माओवादियों की नेतृत्व वाली सरकार भारत को आंख तरेर रही थी। यदि भारत अपने पर आ जाए तो नेपाल का दाना-पानी भी बंद हो जाएगा। हालांकि, देश का नेतृत्व इस बात को समझता तो है लेकिन गंभीरता दिखाने में कोताही बरतता है। इससे काम नहीं चलने वाला है।





दूसरी तरफ चीन भारत पर टिप्पणी कर पूरे एशिया का नेतृत्व करने की कोशिश कर रहा है। क्योंकि, रूस को छोड़ दिया (रूस यूरेशिया के अंतर्गत आता है) जाए तो केवल भारत ही चीन को जवाब दे सकने की स्थिति में है। ऐसे में चीन के लिए यह जरूरी है कि भारत को फुफकारता रहे। यदि भारत सख्ती से ड्रैगन को ललकारे तो वह अपनी मांद में ही रहने को बाध्य हो जाएगा। चीन को अभी भी मुगालता है कि भारत की सैन्य क्षमता कम है। बेशक, चीन से ज्यादा नहीं तो किसी भी मामले में



(कुछ अपवाद को छोड़कर) भारतीय रक्षा प्रणाली कमतर नहीं है। आज भारत हर मामले में चीन के बराबरी पर है। आईटी सेक्टर में तो भारत चीन से कई गुना आगे है। और यही बात चीन को चुभती है। इसी लिए वह पाकिस्तान और भारत विरोधी तत्वों को आगे कर परोक्ष वार कर रहा है।


 वैसे जिस तरह से सभी पार्टियाँ चीन की रवैये पर आक्रोश व्यक्त कर रही हैं। वह सुखद लगता है। केवल वाम दलों को लगता है कि अमेरिका भारत को चीन से लड़वाना चाहता है। यह उनकी चीन भक्ति का सबूत ही है। भारत में रह कर चीन की तरफदारी करने वाले वामपंथियों को अब सबक सिखाने का वक्त आ गया है। दरअसल, वामदलों को कभी भारतीयता पर विश्वास ही नहीं रहा, जनता इस बात को जितना जल्द समझ ले उतना ही देश के लिए अच्छा होगा।



दूसरी तरफ अब समय आ गया है कि भारत अपने विदेश नीति को दमदार और धारदार बनाए ताकि कोई अन्य देश आंख तरेरने की हिमाकत न कर पाए। लचीलेपन और दब्बूपन के चलते कभी-कभी कभार बांग्लादेश भी भारत को आंख दिखाने से बाज नहीं आ रहा है।



भारत को अपना पक्ष विश्व समुदाय के समक्ष काफी मजबूती से रखना होगा और यह बताना पड़ेगा कि भारत केवल शांति का ही पुजारी नहीं है वह गीता में भगवान कृष्ण के उस उपदेश का भी पालन करता है जिसमें उन्होंने कहा है कि, अर्जुन! यदि आप पर या आपके परिवार पर कोई आक्रमण करता है तो उसका जवाब देना धर्म के अनुकूल है।




भारत ने अब बहुत सहन कर लिया अब अधिक चुप रहना कमजोरी दर्शाना होगा। वैसे भी चीन क्या दुनिया का कोई भी देश भारत पर आक्रमण करने की मुर्खता नहीं करेगा। क्योंकि भारत के पास अब आत्मरक्षा करने और मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पर्याप्त क्षमता है। आवश्यकता है तो सिर्फ हमारे कमजोर नेतृत्व को आक्रामक और मजबूत होने का, और इसे हर देशवासी सिद्दत से इंतजार कर रहा है........


      

October 4, 2009

उन्हें तलाश है एक अदद प्रेम+इका की....



उन्हें तलाश है एक अदद प्रेम+इका की। हालांकि, वह शादीशुदा हैं और पिता भी बन चुके हैं, लेकिन अभी भी उनकी प्रेम पिपासा शांत नहीं हुई है, अलबत्ता दिन प्रति बढ़ती ही जा रही है। हर मामले में उनका अपना नजरिया है। इस मामले में भी वह अपने को सही ठहराते हैं। फिलवक्त वह मीडिया के क्षेत्र में अच्छी तरह से स्थापित हो चुके हैं।





वह मेरे आदरणीय मित्र और संबंधी हैं। मैं अबतक के कैरियर में जिन लोगों का सम्मान करता हूं वह उन सब में सबसे ऊपर हैं। उनके विजन पर ही मैं दो साल पहले दिल्ली आया था। फिलहाल, आगे बढ़ने के लिए संघर्ष कर रहा हूं और मुझे विश्वास है कि मेरी कामयाबी में उनका बहुत बड़ा योगदान होगा।





उनकी एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह आप को कभी ना नहीं करेंगे। यही नहीं वह मौके पर आपको अपनी बातों से खुश कर देंगे बाद में आप भले ही उनकी बातों से सहमत न हों। वह ऐसे व्यक्ति हैं जिनसे आप नाराजं हो सकते हैं, खुश हो सकते हैं लेकिन कभी उदासीन नहीं हो सकते। उनको झूठ बोलने से परहेज तो नहीं है लेकिन ऐसा भी नहीं कि किसी का कोई नुकसान हो जाए।




उनकी पत्नी सुशिक्षित और संस्कारों वाली हैं। वह मुझे हमेशा परिवार को साथ लेकर चलने का सुझाव देती हैं उनका कहना है कि आदमी पूरे परिवार के आशीर्वाद से ही आगे बढ़ सकता है।





अब हम आते हैं असल मुद्दे पर पिछले दिन मुलाकात के दौरान उन्होंने मुझसे कहा कि एक अदद प्रेमिका की उनकी तलाश पूरी नहीं हुई है। मैने जब कहा कि शादी के बाद प्रेम-ब्रेम या प्रेमिका के चक्कर में पड़ना ठीक नहीं है। तब उनका कहना था कि विश्व में जितने भी महान लोग हुए हैं उनके पीछे प्रेमिकाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। ऐसे में प्रेमिकाओं और प्रेम का होना कैरियर के लिहाज से बेहद जरूरी है। मुझे नहीं लगता कि उनकी बातों में बहुत ज्यादा दम है। यह भी संभव है कि बहुत सारे लोग उनसे सहमत हों।





अब ऐसे में यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि उन्हें किस तरह का प्रेम चाहिए। कॉलेज या स्कूलों में पढ़ने वाले टीनएजेर्स का या चीनी कम वाले नायकं का। यह तो वही बताएंगे। लेकिन, मुझे नहीं लगता है कि उन्हें चीनी कम वाले नायक सा प्रेम और प्रेमिका चाहिए। आपको क्या लगता है जरूर बताएं.......।








छवि गढ़ने में नाकाम रहे पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया मामले में घूस लेने के दोषी हैं या नहीं यह तो न्यायालय...