October 14, 2009

चीन को उसी के लहजे में जवाब देना होगा


ड्रैगन को ललकारे भारत
 
लगता है अब चीन भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और अन्य महत्वपूर्ण शख्सियतों का दौरा निर्धारित करेगा कि उन्हें अपने देश में कहां भ्रमण करना चाहिए और कहां नहीं। चुनाव प्रचार के लिए प्रधानमंत्री द्वारा अरुणांचल प्रदेश का दौरा करने पर चीन ने जिस तरह से प्रतिक्रिया व्यक्त किया है वह संप्रभुता संपन्न राष्ट्र के अखंडता पर सीधा चोट है। भारत को केवल गहरी नाराजगी जता कर ही संतोष नहीं कर लेना चाहिए। भारत जब तक कठोरता से और   दोटूक जवाब नहीं देगा तब तक चीन इस तरह की ओछी हरकतें करता रहेगा। हालांकि, चीन के राजदूत को तलब किया गया है जो केवल रश्म अदायगी भर ही लगता है।




चीन की दुस्साहस अब हद से आगे बढ़ने लगी है। यदि भारत इसी तरह से रश्म अदायगी के लिए क्वगहरी नाराजगी जताता रहा तो चीन कल को उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत को विवादित जोन बताते हुए उस पर अपना हक जताने लगेगा। भारत का शीर्ष नेतृत्व सिर्फ नाराजगी जता कर ही रह जाएगा।




इस मामले में वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी का यह कहना कि चीन इस तरह की प्रतिक्रिया व्यक्त करता रहता है, महज अपनी कमजोरी या दब्बूपन दिखाना है। चीन द्वारा कब्जा की गई जमीन को जब तक लेने के लिए कूटनीतिक प्रयास नहीं किया जाएगा तब तक ऐसी हरकतें पड़ोसी देश करता रहेगा। अरुणांचल प्रदेश भारत का है उसके लिए किसी से प्रमाण पत्र लेने की जरूरत नहीं है। वैसे भी अरुणांचल को हमारे प्राचीन पौराणिक ग्रंथों में सूर्य का देश माना गया है। ऐसे में कोई कैसे कह देगा वह भारत का नहीं विवादित क्षेत्र है।




दरअसल, कुछ विदेशी ताकतों का यह षड्यंत्र है कि भारत को चौतरफा उलझा कर रखा जाए। यही वजह है कि नेपाल में भी माओवादियों की नेतृत्व वाली सरकार भारत को आंख तरेर रही थी। यदि भारत अपने पर आ जाए तो नेपाल का दाना-पानी भी बंद हो जाएगा। हालांकि, देश का नेतृत्व इस बात को समझता तो है लेकिन गंभीरता दिखाने में कोताही बरतता है। इससे काम नहीं चलने वाला है।





दूसरी तरफ चीन भारत पर टिप्पणी कर पूरे एशिया का नेतृत्व करने की कोशिश कर रहा है। क्योंकि, रूस को छोड़ दिया (रूस यूरेशिया के अंतर्गत आता है) जाए तो केवल भारत ही चीन को जवाब दे सकने की स्थिति में है। ऐसे में चीन के लिए यह जरूरी है कि भारत को फुफकारता रहे। यदि भारत सख्ती से ड्रैगन को ललकारे तो वह अपनी मांद में ही रहने को बाध्य हो जाएगा। चीन को अभी भी मुगालता है कि भारत की सैन्य क्षमता कम है। बेशक, चीन से ज्यादा नहीं तो किसी भी मामले में



(कुछ अपवाद को छोड़कर) भारतीय रक्षा प्रणाली कमतर नहीं है। आज भारत हर मामले में चीन के बराबरी पर है। आईटी सेक्टर में तो भारत चीन से कई गुना आगे है। और यही बात चीन को चुभती है। इसी लिए वह पाकिस्तान और भारत विरोधी तत्वों को आगे कर परोक्ष वार कर रहा है।


 वैसे जिस तरह से सभी पार्टियाँ चीन की रवैये पर आक्रोश व्यक्त कर रही हैं। वह सुखद लगता है। केवल वाम दलों को लगता है कि अमेरिका भारत को चीन से लड़वाना चाहता है। यह उनकी चीन भक्ति का सबूत ही है। भारत में रह कर चीन की तरफदारी करने वाले वामपंथियों को अब सबक सिखाने का वक्त आ गया है। दरअसल, वामदलों को कभी भारतीयता पर विश्वास ही नहीं रहा, जनता इस बात को जितना जल्द समझ ले उतना ही देश के लिए अच्छा होगा।



दूसरी तरफ अब समय आ गया है कि भारत अपने विदेश नीति को दमदार और धारदार बनाए ताकि कोई अन्य देश आंख तरेरने की हिमाकत न कर पाए। लचीलेपन और दब्बूपन के चलते कभी-कभी कभार बांग्लादेश भी भारत को आंख दिखाने से बाज नहीं आ रहा है।



भारत को अपना पक्ष विश्व समुदाय के समक्ष काफी मजबूती से रखना होगा और यह बताना पड़ेगा कि भारत केवल शांति का ही पुजारी नहीं है वह गीता में भगवान कृष्ण के उस उपदेश का भी पालन करता है जिसमें उन्होंने कहा है कि, अर्जुन! यदि आप पर या आपके परिवार पर कोई आक्रमण करता है तो उसका जवाब देना धर्म के अनुकूल है।




भारत ने अब बहुत सहन कर लिया अब अधिक चुप रहना कमजोरी दर्शाना होगा। वैसे भी चीन क्या दुनिया का कोई भी देश भारत पर आक्रमण करने की मुर्खता नहीं करेगा। क्योंकि भारत के पास अब आत्मरक्षा करने और मुंहतोड़ जवाब देने के लिए पर्याप्त क्षमता है। आवश्यकता है तो सिर्फ हमारे कमजोर नेतृत्व को आक्रामक और मजबूत होने का, और इसे हर देशवासी सिद्दत से इंतजार कर रहा है........


      

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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

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