August 23, 2009

रेलवे को क्षति पहुंचाना शगल बन गया है

सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने वालों पर कठोर कार्रवाई हो


सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना लोगों के लिए शगल बन गया है। छोटी-छोटी बातों के लिए लोग राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। आजकल देश में अपनी मांगें मनवाने के लिए सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाना लोगों को सबसे आसान और उपयुक्त लगता है। लोगों को लगता है कि यह सब करके वे सरकार से अपनी गलत बातों को भी मनवा लेंगे, लेकिन वह भूल जाते हैं कि सरकारी संपत्ति जनता की अपनी संपत्ति है और इसे नुकसान पहुंचा कर हम अपना नुकसान ही तो कर रहे हैं। क्योंकि, सरकार जो पैसा दूसरे विकासात्मक कार्यों पर लगाती वह पैसा नष्ट हुई संपत्ति पर लगाना पड़ता है। ऐसे में किसका नुकसान हुआ?



लोगों के गुस्से का सर्वाधिक शिकार देश की जीवन रेखा रेलवे ही हुई है। ट्रेनों की बोगियों में आग लगा देना, रेलवे स्टेशनों में तोड़फोड़ करना तो मानो आम बात हो गई है। हर बात पर लोग ट्रेनों के चक्के जाम कर देते हैं या कोचों में आग लगा देते हैं, इससे सरकार को लाखों-करोड़ों का नुकसान होता है।



आजादी के बाद से बिहार से ही ज्यादातर रेलवे मंत्री बने हैं। यह विडंबना ही है कि बिहार में ही रेलवे को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया जाता है। आए दिन लोग या नक्सली रेलवे को क्षति पहुंचाते रहते हैं। पिछले सात-आठ महीने के रिकार्ड को देखा जाए तो सर्वाधिक नुकसान रेलवे को बिहार में पहुंचाया गया है।




पिछले दिन बिहटा रेलवे स्टेशन के पास जिस तरह से छात्रों ने आरक्षित सीटों पर बैठने को लेकर श्रमजीवी एक्सप्रेस की एसी बोगियों में आग लगा दी बहुत ही दुखद है। जो छात्र देश के भविष्य हैं वे राष्ट्रीय संपत्ति को क्षति पहुंचाने में जरा सा भी देर नहीं लगाते हैं, इससे ज्यादा राष्ट्रीय शर्मनाक और क्या हो सकता है। उसी दिन लखीसराय स्टेशन पर भी लोगों ने एक और ट्रेन को आग लगा दी। कुछ दिन पहले ही दानापुर-सहरसा इंटरसिटी में भी आग लगा दी गई थी।



रेल मंत्री ममता बनर्जी ने रेलवे भरती में स्थानीय लोगों को 50 प्रतिशत आरक्षण देने की घोषणा की थी तो नाराज छात्रों ने बाढ़ रेलवे स्टेशन पर खड़ी एक पैसेंजर ट्रेन को आग लगा दी थी। इस घटना के अगले दिन अथमलगोला रेलवे स्टेशन पर भी छात्रों ने कोसी एक्सप्रेस में आगजनी की कोशिश की। यही नहीं बिहार में बने कई अवैध हाल्टों को हटाने के आदेश पर भी लोगों ने रेलवे को नुकसान पहुंचाया था।




पिछले वर्ष मुंबई में उत्तर भारतीयों की कथित पिटाई तथा राहुल राज नाम के युवक की पुलिस के साथ कथित मुठभेड़ में मौत के बाद कई दिनों तक छात्रों ने रेलवे को निशाना बनाया था। 26 अक्टूबर 2008 को बाढ़ रेलवे स्टेशन पर खड़ी साउथ बिहार ट्रेन में छात्रों ने आग लगा दी। इस घटना में ट्रेन की दो एसी बोगियां जलकर राख हो गई थीं। इससे तीन दिन पूर्व 23 अक्टूबर को परीक्षार्थियों ने सोनपुर मंडल के बापूधाम मोतिहारी स्टेशन पर जमकर उत्पात मचाया था।



इसी तरह 21 अक्टूबर को मुंबई से परीक्षा देकर लौटे छात्रों ने पटना जंक्शन पर जमकर तोड़फोड़ की थी। जंक्शन से गुजरने वाली ट्रेनों में पटना-नई दिल्ली राजधानी एक्सप्रेस समेत चार दर्जन से ज्यादा ट्रेनों को रद्द करना पड़ा था। (यह रेलवे पुलिस में दर्ज मामलों से लिए गए हैं )



यह तो रही छात्रों और बिहार की बात। लेकिन देश के अन्यत्र हिस्सों में भी रेलवे को नुकसान पहुंचाने की घटनाएं बढ़ी हैं। राजस्थान में आरक्षण की मांग को लेकर किए जा रहे आंदोलन के दौरान भी ट्रैक पर धरने पर बैठ कर लोगों ने रेलवे का आवागमन कई दिनों तक ठप कर दिया था, जिससे करोड़ों की राजस्व की क्षति हुई थी साथ ही लोगों को भी भारी असुविधाओं का सामना करना पड़ा था।




दरअसल, देश में कानून का कड़ाई से पालन न होना भी सरकारी संपçत्त को नुकसान पहुंचाए जाने का एक बड़ा कारण है। यदि रेलवे अथवा किसी भी सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने वालों के विरुद्ध कठोरता से पेश आया जाता तो लोग ऐसा करने से बाज आते, लेकिन ऐसा होता नहीं। केंद्र सरकार कानून व्यवस्था राज्य का मामला बता कर कार्रवाई करने से पीछे हट जाती है। राज्य सरकारें रेलवे को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले अपने वोट बैंक के नफा-नुकसान का हिसाब लगाने लगती हैं। उन्हें लगता है कि कार्रवाई करने के मामले को कहीं विपक्ष क्वमुद्दां न बना दे। इस तरह से रेलवे को नुकसान पहुंचाने वालों के हौसले बुलंद होते जाते हैं। उन्हें लगता है कि कुछ भी करो कुछ होने वाला नहीं है।



मुझे याद है, वर्ष 2000 में मेरे गृह जनपद गाजीपुर के दिलदारनगर जंक्शन पर अपर इंडिया के कई बोगियों में उपद्रवी तत्त्वों ने आग लगा दी थी। मैं भी उस दिन ट्रेन पकड़ने के लिए स्टेशन पर ही मौजूद था। ट्रेन को फूंकने वाले लोगों के विरुद्ध मामले दर्ज हुए, लेकिन कार्रवाई आजतक नहीं हुई। ऐसा नहीं है कि पुलिस उन उपद्रवियों को नहीं जानती है। सबकुछ के बावजूद सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने वाले आज भी स्टेशन पर घूमते हुए दिख जाएंगे, लेकिन पुलिस और प्रशासन को नहीं दिखेंगे। क्योंकि, दुर्भाग्य से वे एक पार्टी विशेष से संबंध रखते हैं और पार्टी उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करने देती।




विश्व में कहीं भी रेलवे को नुकसान को पहुंचाने की घटनाएं संभवतः नहीं होती हैं, लेकिन अपने महान देश के महान लोग ऐसी घटनाओं को अंजाम देने में अपना गर्व समझते हैं। उन्हें लगता है कि रेल ही एक जरीया जिससे वे अपनी बात मनवा सकते हैं।




दरअसल, हम लोग अभी भी एक अच्छे और जनतांत्रिक नागरिक के गुणों को विकसित नहीं कर पाए हैं। हम लोगों में सिविक सेंस ही नहीं है। यदि सिविक सेंस होती तो ऐसी घटनायें नहीं होतीं। क्या पश्चिम में या विकसित देशों में अपनी मांगों को लेकर लोग आंदोलन नहीं करते हैं? वहां भी आंदोलन होता है, लेकिन अपने देश जैसा नहीं।


अब समय आ गया है कि देश के कानूनी ढांचा को बदल कर कुछ मामलों में एक संघीय कानून बनाया जाए। सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने वालों या राष्ट्रीयता को नुकसान पहुंचाने वालों के विरुद्ध सीधे राष्ट्रीय स्तर पर कठोरतम कार्रवाई की जाए। ढुलमुल रवैये से अब काम चलने वाला नहीं है।

3 comments:

  1. आपका क्षोभ बिल्कुल सही है। इस तरह इस देश की उन्नति होना बहुत मुश्किल है। आम जनता क्या, ओहदे पर बैठे लोग तक अपने अथॉरिटी का गलत इस्तेमाल करते हैं, तो क्या कहा जाये।

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  2. This is why, I am frustted with my country. First of people are not educated mentally, and this creates thousands of problems. later on, they always try to kill the talent...

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  3. बिल्कुल सही कह रहे हैं आप!

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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

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