मृत्युदंड मिले मिलावटखोरों और जमाखोरों को
क्या हो रहा है अपने देश में? चारों तरफ लूट खसोट और बेइमानी का बोलबाला है। आतंकवाद, अलगाववाद और नक्सलवाद से तो लोग जूझ ही रहे थे कि वर्षों पुराना मर्ज मिलावट और जमाखोरी फिर से जनता को परेशान करना शुरू कर दिया है। लेकिन, सरकारें यह तय नहीं कर पा रही हैं कि इनसे कैसे सख्ती से निपटा जाए। केंद्र और राज्य सरकारों के पास इन पर लगाम लगाने के लिए न तो दृढ़इच्छाशक्ति ही है और न ही कोई दूरदर्शी योजना। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव देश की गरीब जनता को भुगतना पड़ रहा है।
आतंकवाद तो बाहर से प्रायोजित है जिसका मकसद ही बबाüदी और तबाही है, लेकिन जमाखोरी और मिलावट के माध्यम से देश के अंदर देश को खोखला करने की साजिश हो रही है। क्योंकि, मिलावटी खाद्य पदार्थों से लोग आंतरिक और बाह्य रूप से प्रभावित होते हैं। यह एक तरह से स्वीट प्वॉइजन है जो धीरे-धीरे अपना असर दिखाता है।
इन दिनों लगभग रोज ही मिलावट और जमाखोरी के मामले अखबारों और चैनलों की सुर्खियां बन रहे हैं। 22 अगस्त को गाजियाबाद में नकली घी और चाय बनाने की फैक्टरी का पर्दाफाश किया गया है । कई लोग इस मामले में गिरफ्तार किए गए हैं। इसके पूर्व मेरठ में भी नकली देशी घी बनाने की फैक्टरी का भंडाफोड़ हो चुका है। यहां पर शुद्ध देशी घी के नाम पर जानवरों की चर्बी और अन्य तेलों को मिलाकर घी तैयार किया जा रहा था। यहीं नहीं देशी घी के नाम पर लोगों की आंख में धूल झोंकने के मामले का उजागर राजस्थान, हरियाणा और मध्यप्रदेश के जबलपुर में भी हो चुका है। हद तो तब हो गई जब हरियाणा के हिसार, कैथल और करनाल जिलों में सबजियों को समय पूर्व विकसित करने के लिए इंजेक्शन लगाने और दवाओं का प्रयोग करने का मामला प्रकाश में आया।
दूसरी तरफ जमाखोरों की भी पौ बारह है। खाद्य पदार्थों के दाम बढ़ रहे हैं उसका एक सबसे बड़ा कारण जमाखोरी है। बड़े और छोटे सेठ-साहूकार वस्तुओं को जमा कर कृत्रिम कमी पैदा कर दे रहे हैं जिससे महंगाई बढ़ने लगती है। बाद में वे अपना स्टॉक बाजार में ऊंचे दामों पर बेच कर जनता की गाढ़ी कमाई ऐंठ लेते हैं। छत्तीसगढ़ में 23 अगस्त को दस करोड़ रुपये की दालें जब्त की गई हैं। इसके पूर्व मध्यप्रदेश में करोड़ों के चावल जब्त किए गए हैं। देश में ऐसे अनगिनत मामले हैं जिन तक किसी की नजर नहीं पहुंच पाती है।
यही नहीं अब यह नौबत आ गई है कि मुनाफे के लिए असामाजिक तत्व खून में मिलावट करने से भी नहीं हिचक रहे हैं। पिछले दिन लखनऊ में मिलावटी खून बेचने वाले रैकेट का पर्दाफाश होना तो कुछ अलग ही कहानी बयां करता है। अब लोग करें तो करें क्या? लखनऊ में पकड़ा गया रैकेट इंसानों के खून में जानवरों का खून मिलाकर 900 से 1500 रुपये तक में बेच रहा था। लगता है लोगों की जमीर ही खत्म हो गई है। पैसे के लिए ऐसे लोग किसी भी हद तक जा सकते हैं। सच तो यह कि ऐसे लोगों की कोई हद ही नहीं है।
इस तरह के मामलों की फेहरिस्त लंबी है। कुछ लोग गिरफतार भी किए जा रहे हैं। फिर भी इस पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। वहज भी आईने की मानिन्द साफ है, लोगों में मौजूदा कानून का खौफ ही नहीं है। या स्पष्ट कहें तो इन मिलावटखोरों और जमाखोरों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई ही नहीं की जाती। क्योंकि, जो धंधों के मुखिया हैं उन्हें कहीं न कहीं नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों और पुलिस से संरक्षण प्राप्त है।
दरअसल, मौजूदा कानून को और सख्त बनाने की जरूरत है। ऐसे लोगों में कानून का भय ही नहीं रह गया है। इनके विरुद्ध कठोर कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि दूसरे ऐसे लोग सबक लें सकें। सबसे बड़े देशद्रोही तो यही हैं, क्योंकि, ऐसे लोग जनता के दिलो-दिमाग को कुंद करते हैं। यह लोग माफी अथवा कम सजा के हकदार नहीं हो सकते हैं। कुछ लोगों को केवल गिरफतार कर लेने और एफआईआर दर्ज करन े भर से कुछ नहीं होने वाला है। तह में जाकर पड़ताल करनी होगी और आरोपियों को मृत्युदंड से कम सजा मिलनी ही नहीं चाहिए। ऐसे मामलों के लिए सरकार को अलग से न्यायालयों का गठन करना चाहिए, जहां द्रुत गति से मामलों का निपटारा कर आरोपियों को सजा मिल सके।
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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।