September 13, 2009

कब स्वीकारेंगे अपनी गलतियों को राजनीतिक दल


भाजपा और वाम दलों को सच्चाई से आत्मविश्लेषण करना चाहिए



क्या भारतीय राजनीतिक दल अपनी गलतियों से कभी सबक लेंगे। गलतियों के लिए बहाना बनाना, तर्क गढ़कर उस पर पर्दा डालना और झूठ का सहारा लेना तो लगता है हमारे नेताओं के संस्कारों में रच बस गया है। राजनीतिक दल अपनी विफलताओं को ईमानदारी से स्वीकार नहीं करते। दूर जाने की जरूरत नहीं है। लोक सभा चुनाव में मिली पराजय का विश्लेषण ईमानदार तरीके से न तो दक्षिणपंथी भाजपा और नही वामपंथी दल ही कर पाएं हैं। यदि किए भी हैं तो जनता और देश के सामने लाने की इनमें हिम्मत नहीं है। दरअसल, ये दल अपनी गलतियों पर मंथन करना चाहते ही नहीं हैं।





लोक सभा में मिली पराजय पर भाजपा और वामदलों में मचा घमासान का कारण ऊपर से लेकर निचले स्तर के नेताओं का अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना है। जो लोग वाकई जिम्मेदार हैं वह अपनी जवाबदेही से भाग रहे हैं। ऐसे में समर्पित नेताओं और कार्यकर्ताओं को निराशा घेरने लगती है। भाजपा की दिक्कत है कि बहुत सारे नेता मुंगेरीलाल के हसीन सपने देखने में विश्वास करते हैं। जब उन्हें जनता के साथ मिलकर उनकी समस्याओं के समाधान के लिए आवाज उठानी चाहिए तो वे एसी में आराम फरमाते हैं। मैं भाजपा के कुछ नेताओं को व्यçक्तगत तौर पर जानता हूं जो सत्ता में रहने के दौरान कार्यकर्ताओं से मिलना तक नहीं चाहते थे। वह आज भी पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर विराजमान हैं। हालांकि, पार्टी में सभी लोग ऐसे नहीं हैं। लेकिन, कुछ लोगों के चलते ही आज भाजपा की यह स्थिति हुई है। आम कार्यकर्ताओं में कोई उत्साह ही नहीं है। एक समस्या भाजपा की यह भी है कि जो जमीन से जुड़े नेता हैं वह आज भी पार्टी के प्रति समर्पित हैं। लेकिन, जिनका जनाधार नही है वह या तो पार्टी पर कब्जा किए बैठे हैं या महत्वपूर्ण पद की आस में हैं। ऐसे में बगावत और अनुशासनहीनता तो होना ही है। भाजपा का वर्तमान संकट सत्ता लोलुपता का द्योतक है।





दरअसल, लोक सभा चुनाव में भाजपाइयों ने जीत के लिए सामूहिक प्रयास ही नहीं किया। ऐसा नहीं था कि मुद्दे नहीं थे, लेकिन उन्हें ठीक से पेश ही भाजपा वाले नहीं कर पाए। हार का ठीकरा किसके सिर फोड़ा जाए अथवा पार्टी को शीर्ष से लेकर निचले स्तर तक जिम्मेदारी लेनी चाहिए अभी यही तय नहीं हो पाया। आज जो लोग बगावत का झंडा उठाए हुए हैं उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण पद चाहिए। उन लोगों को पार्टी की मर्यादा, अनुशासन और नीतियों से कुछ लेना देना नहीं है। दूसरी तरफ आज जो लोग निकले गए हैं उन्हें पार्टी में ढेरों कमियां दिखने लगी हैं, लेकिन जब वे थे तो उन्हें ऐसा कुछ दिखता ही नहीं था। ऐसे नेताओं को भी जनता खूब समझती है। मीडिया में कमियां गिना कर अपनी जिम्मेदारी और जवाबदेही से वे लोग नहीं बच सकते। एक पार्टी छोड़कर दूसरे में जाने वाले कभी किसी दल का भला नहीं कर सकते।





भले ही जसवंत सिंह कंधार कांड के बारे में आडवाणी को झूठा बता रहे हैं, लेकिन देश की जनता यह कैसे भूल सकती है कि उस कांड को सफल बनाने में इन महाशय का ही पूर्ण योगदान था। मंत्री रहते इन्होंने कोई ऐसी छाप नहीं छोड़ी जिसे याद किया जा सके।





आज आडवाणी के नेतृत्व पर सवाल उठाने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए की भाजपा को शीर्ष पर पहुंचाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान है। यदि अटल जी ने दूसरे दलों के लिए भाजपा को ग्राह्य बनाया तो आडवाणी ने पार्टी को सबल बनाने का अभूतपूर्व कार्य किया है।








माकपा के महासचिव प्रकाश करात का यह कहना कि भाजपा का वर्तमान संकट उसका संघ से नाता न तोड़ने का प्रतिफल है तो वाम दलों का हासिये पर चला जाना और एक-दो राज्यों में ही सिमट जाना किसका प्रतिफल है।





लोकतंत्र में कोई भी राजनीतिक पार्टी किसी एक व्यक्ति विशेष की नहीं होती। उस पर जनता का भी अधिकार होता है और जनता को जानने का पूरा हक है कि कोई दल विशेष क्यों पीछे रह गया। देश को मजबूत और ऊर्जावान विपक्ष देने के लिए भाजपा और वाम दलों को अपनी कमियों को दूर कर केंद्र सरकार की नाकामियों को जनता के सामने सच्चाई से लानी चाहिए। तभी लोकतंत्र का सही अर्थों में रक्षा हो सकेगा और तभी हमारा देश उन्नति के रास्ते पर चल सकेगा।




2 comments:

  1. स्व मूल्यांकन व दूरदर्शिता के आभाव में कुछ भी संभव नही ।

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  2. आपकी लेखनी को मेरा नमन स्वीकार करें.

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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

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