बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम की जयन्ती के बहाने शक्ति प्रदर्शन करने वाली बसपा सुप्रीमो उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री नोटों की माला पहन कर क्या सन्देश देना चाहती हैं। यह तो वही बताएंगी। लेकिन, जिस प्रदेश में बुन्देलखण्ड जैसे पिछड़े इलाके हैं जहां कि जनता गरीबी से त्रस्त है वैसे प्रदेश में ऐसा प्रदर्शन निश्चय ही जनता का उपहास उड़ाया जाना ही मानना चाहिए। विपक्ष की हायतौबा से बेपरवाह मुख्यमंत्री जयन्ती के दूसरे दिन भी नोटों की माला पहन कर दलित की गरीब बेटी होने का सबूत दे दिया है। यदि उन पैसों को जयन्ती समारोह में आए गरीबों की बेटियों की शादी और उनकी शिक्षा के लिए दे दिए गया होता तो शायद बहुतों का कल्याण हो गया होता। दरअसल, यहां गरीब जनता की फिक्र किसे है। मायावती को तो विरोधियों के जले पर नमक छिड़कना था और प्रदेश की असल मुद्दों से सबका ध्यान भटकाना था जिसमें बसपा के रणनीतिकार पूरी तरह से सफल रहे।
बसपा संस्थापक की जयन्ती पर रैली के नाम पर उत्तरप्रदेश की मुख्यमंत्री धनबल और जनबल का प्रदर्शन करने में पीछे नहीं रहीं। उत्तरप्रदेश देश के बीमारू राज्यों में शुमार है। प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य, सड़क, बिजली, सिंचाई सहित कानून व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त है। लेकिन, मुख्यमंत्री जयन्ती मनाने के नाम पर करोड़ों रुपये पानी की तरह फूंक देती हैं। योजनाओं को पूरी करने के लिए धन की कमी की बात करती हैं। बजट मुहैय्या कराने में केन्द्र सरकार पर भेदभाव का आरोप भी लगाती हैं। क्या, मायावती और बसपा के रणनीतिकार बताएंगे कि इतनी रकम कहां से आई। जयन्ती समारोह पर कितना खर्च हुआ। क्या बसपा के पार्टी कोष में धन है कि वह अपने खर्च पर इतना बड़ा आयोजन कर सकती है। देश का कोई भी नागरिक इससे इत्तेफाक नहीं रखेगा कि जयन्ती आयोजन में सरकारी धन का दुरुपयोग न हुआ है। हालांकि, उत्तरप्रदेश के लोकनिर्माण मन्त्री का यह कहना कि यह आयोजन और माला के लिए रकम कार्यकर्ताओं द्वारा चन्दा कर जुटाया गया है। गले के नीचे नहीं उतरता। क्या मन्त्री महोदय यह बताएंगे कि प्रदेश में जो प्रतिमाएं लगाई जा रही हैं उसके लिए पार्टी कार्यकर्ताओं ने चन्दा एकत्र कर दिया है। या सरकारी खजाने का ही इस्तेमाल किया गया है।
दूसरी तरफ, मुख्यमंत्री को अपनी मूर्तियां भी लगवाने का शौक है। सीएम साहिबा आप अच्छा काम करेंगी तो जनता आपकी मूर्ति खुद लगवाएगी। अपने कार्यों की समीक्षा जनता को करने दीजिए। दलित उत्थान और दलित पुरुषों को सम्मान दिलाने के नाम पर फिजूल खर्ची का समर्थन नहीं किया जा सकता। वैसे भी बसपा केवल दलित एजेण्डे के बल पर ही उत्तरप्रदेश में बहुमत की सरकार बनाने में सफल नहीं हुई है। पार्टी को राज्य में सभी जातियों का भरपूर समर्थन मिला है। जो जातियां भाजपा और कांग्रेस की कभी कट्टर समर्थक थीं उन्होंने भी बसपा को वोट देकर सत्ता की चाबी सौंपी थीं। शायद मायावती और उनके सिपाहसलार इस बात को भूल गए हैं। मुख्यमंत्री साहिबा याद रखिए काठ की हाण्डी बार-बार चूल्हे पर नहीं चढ़ती।
पांच बार देश को प्रधानमन्त्री देने वाले उत्तरप्रदेश का यह दुभाüग्य है कि राज्य के विकास के लिए किसी दल ने ईमानदारी से पहल नहीं किया। यहां पाटिüयां सत्ता हासिल करने और अपनों की जेबें भरने में ही लगी रहीं। आज भी किसी दल केपास प्रदेश के विकास के लिए न तो कोई विजन है और न ही नीति। लेकिन, यहां की जनता पता नहीं क्यों सबकुछ जानते हुए भी पिछड़ेपन का दंश झेलने को बाध्य है।
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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।