July 17, 2010

माफी नहीं ऑक्टोपस पॉल के पास जाएं मुलायम जी........

पिछले दिन मुलायम सिंह यादव ने लोक सभा चुनावों के दौरान कल्याण सिंह को साथ लिए जाने के लिए देश के मुस्लिम समुदाय से माफी मांग ली। इसके साथ ही अपने मुख्यमन्त्रित्व काल में बाबरी मस्जिद को बचाने का दावा भी कर डाला। अपने माफीनामे में सपा प्रमुख आजीवन मुसलमानों के कल्याण के लिए संघर्ष करते रहने का संकल्प व्यक्त किया है। इसे भारतीय राजनीति का विडंबना ही कहेंगे कि सभी गैर भाजपाई दल मुस्लिम समुदाय को वोट बैंक के अलावा और कुछ नहीं समझते। शायद इसे मुसलमान समझते भी हैं और नहीं भी समझते हैं। मुलायम सिंह का माफीनामा आगामी यूपी विधान सभा चुनाव में अपनी खोई जमीन को वापस पाने की बेचैनी को ही दर्शाता है। लेकिन, लगता नहीं मुलायम और उनका कुनबा फिर से उत्तर प्रदेश में सत्ता में आ पाएगा।

जब लोकसभा चुनाव में सपा के साथ कल्याण सिंह साथ आए थे तो उस समय वह पाक साफ हो गए थे। उनके कथित सारे गुनाह (बाबरी ढांचा गिराने का) धुल गए थे। क्योंकि, वह धर्मनिरपेक्षता के सबसे बड़े लंबरदार के साथ आ गए थे। लेकिन, जैसे ही चुनाव परिणाम आए कल्याण सपा, मुलायम और उनके परिवार के लिए अछूत हो गए। कल्याण के नाम से भी मुलायम को चिढ़ होने लगी है। हालांकि, कल्याण सिंह ने भी वक्त की नजाकत को देखते हुए मुलायम को अवसरवादी करार देने में देर नहीं लगाया और अपने को रामभक्त कहना शुरू कर दिया। लेकिन, मुलायम से गलबहियां करने के दौरान बाबरी प्रकरण पर उन्हें भी खेद था। यही तो हमारे देश की राजनीति है और यही हमारे नेताओं का दोहरा चरित्र है। जिसे देश की जनता नहीं समझती।

करीब आने और दूर छिटकने के प्रकरण में दोनों नेता अपना दोहरा चरित्र छुपाने में नाकाम रहे। अब इसे रामभक्त और मुसलमान भक्त को जनता कितना समझती है यह तो आने वाले वक्त बताएगा, लेकिन इस प्रकरण से दोनों नेताओं की राजनीति अवसरवादिता से ज्यादा कुछ नहीं है। मुलायम सिंह को लगता है कि माफी मांग लेने और आजम खां को साथ ले लेने से उनका उत्तर प्रदेश की राजनीति में फिर से पहले वाला मुकाम हासिल हो जाएगा सन्देह है। क्योंकि, अब मुसलमानों के लिए केवल मुलायम ही नहीं हैं उनसे आगे भी कुछ बड़े और छोटे दल मुस्लिम समाज का पैरोकार होने का दावा करने लगे हैं।

मुलायम की यह माफीनामा लोक सभा और विधान सभा के उपचुनावों में मिली पराजय से उपजी हताशा को ही बयां कर रही है। उम्र और सम्भवतज् राजनीति की आखिरी बाजी खेलने की जी तोड़ कोशिश कर रहे मुलायम को माफी से कितना लाभ पहुंचता है। यह बसपा और कांग्रेस की राजनीति पर ही टीकी है। मतलब कि कांग्रेस जितना मजबूत होगी सपा उतना ही कमजोर होगी। राहुल गांधी का मिशन उत्तरप्रदेश सपा को ही कमजोर कर रहा है। इसे मुलायम भी खूब समझ रहे हैं। उनकी माफी इसी का प्रतिफल है।

अब उत्तरप्रदेश में मुलायम की पहले वाली छवि नहीं रही। उनसे उनकी ही जाति के लोग दूर होते जा रहे हैं। उत्तर प्रदेश की पहली बार सत्ता सम्भालने वाले मुलायम की छवि दलित, पिछड़ों और धर्मनिरपेक्ष नेता की छवि थी। जो अब कब का मिट चुकी है। जनता जान चुकी है कि मुलायम लोहिया के नाम पर अपने ही परिवार को आगे ले जाना चाहते हैं।

ऐसे में मुलायम सिंह को माफी मांगने की जगह ऑक्टोपास पॉल की शरण में जाना चाहिए। शायद, कुछ राजनीतिक भविष्य के लिए शुभ संकेत मिल जाए।




3 comments:

  1. बहुत बढ़िया मशविरा. मान लें तो ठीक वरना नुकसान.

    ReplyDelete
  2. नेताओं को कभी सलाह पसंद भी आयी है, जो वे मानेंगे। यदि मुलायम सिंह तक आपकी बात पहुंच जाएं और वे इस पर अमल करें तो कईयों की भावना को तसल्‍ली होगी।

    ReplyDelete
  3. शैलेश भैया, कृपया ब्‍लॉग को नियमित बनाए रखें।

    सादर,
    मृत्‍युंजय

    ReplyDelete

आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

छवि गढ़ने में नाकाम रहे पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया मामले में घूस लेने के दोषी हैं या नहीं यह तो न्यायालय...