August 23, 2019

छवि गढ़ने में नाकाम रहे पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया मामले में घूस लेने के दोषी हैं या नहीं यह तो न्यायालय का फैसला आने के बाद ही पता चलेगा, लेकिन एक परिपक्व नेता की छवि गढ़ने से वह चूक गए। उनके पास एक सुनहरा अवसर था कि वह दिखा सकें कि उन्हें सियासी मोहरा बनाया जा रहा है। लेकिन, ऐसा संदेश देने के लिए जिस जननेता की इच्छाशक्ति चाहिए थी वह उनमें नहीं दिखी।

दरअसल, जब हाईकोर्ट ने उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी तभी इधर-उधर भागने के बजाय खुद सामने आकर कहना चाहिए था कि सीबीआई आकर उन्हें पूछताछ के लिए ले जाए। बुधवार को देरशाम कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान ही उन्हें यह घोषणा करनी चाहिए थी कि सीबीआई के अधिकारी आकर उन्हें अपने साथ पूछताछ के लिए ले जाएं, पर वह चूक गए। इसके पीछे उनके सियासी प्रबंधकों की जो भी रणनीति रही हो पर सियासी तौर पर पीड़ित होने का संदेश तो कतई नहीं दे पाए। मीडिया को संबोधित करने के बाद चिदंबरम का अपने घर जाना और यह जानते हुए कि सीबीआई टीम उनके दरवाजे पर खड़ी है दरवाजा बंद करना उनकी छबि के बट्टा लगा गया।

यह सब घटनाक्रम आम आदमी के संदेह करने का पर्याप्त आधार दे गया कि दाल में कुछ काला ही नहीं पूरी दाल ही काली है। अब कांग्रेस कितना ही कह ले कि उसके नेताओं को केंद्र सरकार के इशारे पर केंद्रीय जांच एजेंसियों की तरफ से परेशान किया जा रहा है यह इन घटनओं के बाद कोई मानने वाला नहीं है।

August 20, 2019

वाकई मंदी आने वाली है या भय का माहौल बनाया जा रहा है

- मोदी समर्थक इसे सोचाी समझी साजिश का हिस्सा बता रहे हैं
- आरोप,इलेक्ट्रिक वाहनों की नीति को रोकने हो रही है साजिश

ऑटो सेक्टर में कथित मंदी किस ओर इशारा कर रही है। क्या वाकई में देश में आने वाले आर्थिक संकट का इसे संकेत माना जाए। अथवा इसके पीछे कोई और वजह है। वैसे निष्पक्ष विशेषज्ञों का कहना है कि ऑटो सेक्टर में यह मंदी वैश्विक है। इस समय दुनियाभर में ऑटो बाजार मंदी की दौर से गुजर रहे हैं। इस समय देश में ऑटो सेक्टर में कम से कम साढ़े तीन लाख अस्थायी पदों को खत्म किया जा चुका है। आगे और नौकरियों के जाने की आशंका है।
हालांकि, मोदी सरकार के प्रति नरम रुख रखने वाले आशंका व्यक्त करते हैं कि कहीं न कहीं मीडिया का एक वर्ग और वामपंथी रूझान वाले अर्थशास्त्रियों का समूह मंदी का भय फैलाकर केंद्र सरकार के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश कर रहा है।
वैसे जानकारों का कहना है कि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि मोदी सरकार ने जब से इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर अपनी नीति की घोषणा की है तभी से कहीं न कहीं मंदी की बात भी सामने आने लगी है। क्योंकि, इस बात को तब और बल मिलता है जब बजाज समूह के चेयरमैन राहुल बजाज की बातों पर गौर करते हैं कि विकास स्वर्ग से नहीं आता। विकास के लिए यहीं पर माहौल बनाने की जरूरत है। उनका इशारा इलेक्ट्रिक वाहनों की नीति की तरफ ही था। बजाज ऑटो की आम वार्षिक बैठक में शेयरधारकों को संबोधित करते हुए राहुल बजाज ने कहा, ऑटो सेक्टर बेहद मुश्किल हालात से गुजर रहा है। बकौल राहुज बजाज सरकार इस दिशा में कुछ नहीं कर रही है। उन्होंने सरकार पर देशवासियों को गुमराह करने का अरोप लगाया। उनका यह भी कहना है कि सरकार को अपनी नीतियों में और बदलाव लाने की जरूरत है।
इससे पहले उनके पु़त्र राजीव बजाज ने भी आम बजट पेश होने के बाद एक साक्षात्कार में मोदी सरकार पर इलेक्ट्रिक वाहनों की नीति को लेकर निशाना साधा था। तब उन्होंने कहा था कि यह सरकार सबकुछ रातोंरात बदल देना चाहती है। उन्होंने पूछा था कि यदि लोग इलेक्ट्रिक मॉडल को नापसंद कर देते हैं तब ऑटो उद्योग क्या करेगा क्या हम अपनी दुकानदारी बंद कर देंगे।
वहीं, ऑटो कंपनियों के संगठन सियाम के आंकड़ों  पर गौर करें तो इस साल जून माह में  कारों की घरेलू बिक्री भी 24ण्97ः घटी है। बीते जून में यह आंकड़ा 1ए39ए628 यूनिट्स का था, जो गत वर्ष जून में 1ए83ए885 यूनिट रहा। यह लगातार आठवां महीना है जब यात्री वाहनों की बिक्री में कमी दर्ज की गई। इस बीच ऑटो उद्योग ने केंद्र की मोदी सरकार से इस गिरावट को रोकने तथा नौकरियों को सुरक्षित रखने के लिए ठोस  उपाय करने का आग्रह किया है। अब देखना है कि सरकार क्या नीति अपनाती है।
वैसे इस मामले में सरकारा समर्थकों का कहना है कि इन सबके पीछे की कहानी मंदी की आड़ में इलेक्ट्रिक वाहनों की गति रोकने की सोची समझी कवायद है; जिसे भारी बहुमत से सत्ता में दोबारा लौटी मोदी सरकार भी बखूबी समझती है। यही वजह है कि मोदी सरकार कुछ खास प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं कर रही है। हां यह जरूर है कि केंद्र सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों को अपनाने की गति कुछ समय के लिए कम करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। 

August 17, 2019

jammu&kashmir लाइलाज बीमारी का शानदार उपचार

70 सालों से लाइलाज हो चुकी बीमारी का इतना शानदार उपचार तो केवल नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ही कर सकती है। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में इस जोड़ी की किसी और से तुलना करना नाइंसाफी होगी। 
नरेंद्र और मोटा भाई की जोड़ी अद्भुत, अद्वितीय और बेमिसाल है। मौजूदा दौर की राजनीति में इनके सामने किसी का टिकना तो दूर किसी शख़्स में खड़ा होने की भी सामर्थ्य नहीं है। 
कश्यप ऋषि की धरती जिस काश्मीर के बारे में मान लिया गया था कि फिलहाल उसका हल नहीं निकलने वाला नहीं है। उसका यह फार्मूला दिल को छू जाता है।

January 24, 2018

गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं

69वें गणतंत्र दिवस की सभी ब्लॉगर बंधुओं को हार्दिक बधाई।

May 10, 2013

कहीं के नहीं रहे येदियुरप्पा.....

कर्नाटक विधानसभा चुनाव के परिणाम आ गए हैं; चैनलों पर इसके विश्लेषण जमकर हो रहे हैं; भाजपा और कांग्रेस के तमाम नेता परिणामों की व्याख्या अपने तरीके से कर रहे हैं; कांग्रेसी जहां इसे राहुल गांधी का जादू बताकर खुशफहमी पाल रहे हैं, वहीं भाजपा को कुछ कहते हुए नहीं बन रहा है; कांग्रेस को स्पष्ट तौर पर मिला बहुमत भाजपा के अस्थिर और भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी सरकार से लोगों के मोहभंग और आक्रोश का परिणाम है; 
कांग्रेस की जीत और भाजपा की हार तो निश्चित थी; इस चुनाव से जिसको सबसे ज्यादा उम्मीद थी वह थे येदियुरप्प; लिंगायत समुदाय का यह कदावर नेता भाजपा को बर्बाद करने के चक्कर में अब कहीं का नहीं रहा; चुनाव परिणाम के दिन अर्थात 8 मई को वह यह कहते हुए सुने गए थे कि बिना उनके प्रदेश में किसी की सरकार नहीं बनेगी; सरकार बनाने की चाबी उनके हाथ में ही रहेगी; वह किंगमेकर की भूमिका अदा करना चाहते थे; लेकिन जैसे-जैसे परिणाम आते गए येदियुरप्प के ख्वाब और हैसियत तार-तार होते गए; उनकी पार्टी 6 विधायकों तक ही सिमट गई; उनके आवास पर एक अजीब सा सन्नाटा पसरा रहा; उनकी भी हालत यूपी के कल्याण सिंह, मध्यप्रदेश में उमा भारती और गुजरात के केशुभाई पटेल की तरह ही हो गई है;
इस परिणाम ने यह तो साबित ही कर दिया गया कि जनता अब स्थिर और एक साफ सुथरी सरकार चाहती है; बार-बार मुख्यमंत्री बदलने और येदियुरप्पा का भ्रष्टाचार और उनका भाई-भतीजावाद भाजपा को ले बैठा; भाजपा में एकजूटता का अभावा रहा; चुनाव से पहले भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष को बदल कर भी गलती की; पार्टी ने अपने बिखराव पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया; हालांकि, भाजपाई यह मानते थे कि इस बार कमल नहीं खिल पाएगा; कर्नाटक में भाजपा के इस दशा के लिए अनंत कुमार भी कम जिम्मेदार नहीं हैं; उनकी असहिष्णुता भी भाजपा को एकजूट होने में बाधक रहा; वह खुद भी मुख्यंत्री बनने के चक्कर में पड़े रहे;
अब कांग्रेसी इसे राहुल गांधी बनाम नरेंद्र मोदी करने में जुट गए हैं; लेकिन कांग्रेस के नेता बिहार, यूपी, पंजाब, गोवा और गुजरात के परिणामों को भूल गए हैं; यूपी में तो राहुल और सोनिया अपने क्षेत्रों में भी कांग्रेस को जीत नहीं दिला पाए;
भ्रष्टाचार पर कांग्रेस को बोलने का कोई हक नहीं है; जिसकी सरकार आकंठ भ्रष्टाचार में डूबी हो उसे दूसरों पर कीचड़ उछालने का कोई हक नहीं है; कर्नाटक विधान सभा में कांग्रेस की जीत से ज्यादा भाजपा को येदियुरप्प के भ्रष्टाचार की सजा मिली है; जनता दल एस की जीत अवश्य ही ध्यान खींचती है; एचडी कुमार स्वामी की पार्टी का उभार भाजपा और कांग्रेस के लिए सिरदर्द है; यदि लोकसभा के चुनाव तक भाजपा अपने कील कांटे दुरुस्त नहीं कर लेती उसे इसी तरह के परिणाम के लिए तैयार रहना होगा;

April 30, 2013

हम अंग्रेजों के जमाने के पुलिस वाले हैं....

फिल्म शोले में एक डॉयलॉग है ’हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं...’ अपने देश की पुलिस और पुलिस वालों की रवैया भी अंग्रेजों के जमाने के ही है; जुल्मी, आताताई, भ्रष्ट और सीधेसाधे लोगों को दबाने और तंग करने वाली; अंग्रेजों ने जिस दमनकारी पुलिस व्यवस्था का खाका खींचा था वह आज भी कुछ मामलों को छोड़कर कायम है; अंतर बस इतनाभर है कि उस समय भी पुलिसिया जुल्म सहने वाले लोग अपने होते थे पुलिस के सिपाही भी अपने देश के होते थे पर अधिकांश अफसर अंग्रेज थे; पर आज जनता वही है सिपाही अपने ही हैं और अफसर भी अपने हैं, लेकिन जुल्म ढाने के तरीके पुलिस के वही हैं; अजीब विडंबना देखिए उस समय के सिपाही निहत्थे और लाचार लोगों पर हाथ उठाने से मना कर देते थे; किंतु आज के हमारे अपने पुलिस के जवान आम लोगों पर बर्बरता ढाने में अंग्रेजों के जमाने की पुलिस को भी पीछे छोड़ दे रहे हैं; देश की सभी राज्यों की पुलिस जनता के प्रति तिरस्कृत व्यवहार करने में एक जैसी है;
दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश, बिहार समेत तमाम राज्यों की पुलिस की कार्यशैली एक जैसी है; लोगों पर लाठी बरसाने, जनता से उपर समझने, नेताओं के एजेंट की तरह कार्य करने वाले और रिश्वत लेने के लिए किसी भी हद तक जाने में पुलिस वालों को कोई गुरेज नहीं है; पुलिस झूठे मुकदमों में फंसाने में एकदम से माहिर है; पुलिस की इस रवैये पर सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी एकदम ठीक है कि यहां की पुलिस के तरीके जानवरों जैसे हैं;
16 दिसंबर 2012 की घटना के बाद उपजे जनाक्रोश के बाद दिल्ली पुलिस वाले बेगुनाह दो भाइयों को फंसा तो दिए; लेकिन, बाद में पुलिस को कोर्ट में यह कहना पड़ा कि उनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है;
कुछ दिन पहले अलीगढ़ में रेप के बाद एक बच्ची की हत्या का विरोध कर रहीं महिलाओं पर पुलिस ने कितनी बेरहमी से लाठियां बरसाईं; वहीं दिल्ली में एक एसीपी स्तर के अधिकारी ने तो एक लड़की को तो ऐसा थप्पड़ जड़ा कि उसके कान से खून तक निकल आए; हालांकि, दोनों ही मामलों में दोषी पुलिस वालों को निलंबित कर दिया गया है;
सवाल यह नहीं है कि दोषियों को दंडित किया गया या नहीं; सवाल यह है कि इस तरह की हरकत पुलिस वाले क्यों करते हैं; कुछ
घटनओं को छोड़ दिया जाए तो इस तरह के व्यवहार करने में एएसपी या उससे नीचे वाले अधिकारी या कांस्टेबल ही सबसे ज्यादे हैं; और इनमें भी सबसे ज्यादे वही हैं जो निचले लेबल से पदोन्नति पाए हैं;
दरअसल, पुलिस वालों के चिड़चिडे़पन और तनाव के लिए उनका खुद का महत्वाकांक्षा तो जिम्मेदार है ही, काम का अधिक होना आराम के लिए कम समय मिलना भी पुलिस के वर्तमान हालात के लिए जिम्मेदार है; पर्याप्त संख्या में जवानों और अधिकारियों का भर्ती न होना भी पुलिस वालों को चिड़चिड़पने का शिकार बनाता है;
पुलिस वालों को जनता के प्रति संवेदनशील बनाने के लिए उन्हें समय-सयम पर प्रशिक्षण और योग आदि के कैंपों में भेजना चाहिए; साथ ही पुलिस के कामों में राजनीतिक हस्तक्षेप को पूर्णतया कम करना होगा; रिश्वतखोर और लापरवाह सिपाहियों और अधिकारियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने होंगे;   

March 16, 2013

विवादों और सफाई देने में ही गुजरा सपा सरकार का एक साल

यूपी सरकार की अच्छी योजनाएं खाने में कंकड. की तरह साबित हुईं

उत्तरप्रदेष में अखिलेष सरकार को एक साल पूरे हो गए; इन एक वर्शों में प्रदेष के लोग सपा कार्यकर्ताओं के गंुडई से तंग आ गए हैं; मुख्यमंत्री के कई जनकल्याणकारी कार्यों और घोशणाओं पर मंत्रियों, विधायको, नेताओं और कार्यकर्ताओं के कार्यकलापों ने पानी फेर दिया है; हत्या, अपहरण, बलात्कार समेत अपराध तेजी से बढे हैं; यही वजह है कि कई बार सपा प्रमुख प्रमुलायम सिंह को भी उत्तर प्रदेष सरकार को नसीहत देनी पड.ी है; लेकिन सपाई हैं कि मानते ही नहीं;
अपने एक साल के कार्यकाल के मौके पर मुख्मंत्री अखिलेष यादव ने जोर देकर कहा कि प्रदेष में कानून व्यवस्था उतने खराब नहीं हैं, जितना मीडिया वाले बढ.ाचढ.ाकर पेष कर रहे हैं; हम स ुधार के लिए कोषिष कर रहे हैं;
उन्होंने यह भी कहा कि काम करने वाले अधिकारियों को आगे बढ.ने का मौका दिया जाएगा; इसका मतलब यह हुआ कि अधिकारी काम नहीं कर रहे हैं; अब सवाल यह है कि क्या अखिलेष यादव का ब्यूरोक्रेट्स पर उतना नहीं है; दरअसल इसके पीछे एक खास वजह है; वह यह है कि जब भी किसी मामले में सपा से संबंधित लोगों के नाम आते हैं; सपा के ही वरिश्ठ लोग उनकी पैरवी करते हैं; इसलिए अधिकारी भी मनमानी करते हैं; यही नहीं जो अफसर सपाइयों के मनमुताबिक काम नहीं करते हैं उनके साथ बदसलूकी की जाती है या उनका स्थानांतरण करवा दिया जाता है;
प्रदेष में बढ.ते अपराधों पर नजर दौड.ाई जाए तो उनमें से अधिकांष मामलों में सपा के लोग के ही संलिप्ता पाई गई है; सरकार गठन से लेकर आज तक सपाइयों ने दबंगई कर कानून व्यवस्था को ठेंगा दिखाया है; चुनाव परिणाम के दिन ही एक जिले में सपाइयों ने पुलिस और मीडिया वालों को ही बंधक बना लिया था; इसी दिन ही पता चल गया था कि आने वाले समय में प्रदेष का कानून व्यवस्था का क्या हर्श होने वाला है; सालभर इसमें इजाफा ही हुआ है; हर जिले में सपा के लोगों ने कानून व्यवस्था की धज्जियां उड.ाई हैं; कोई भी ऐसा आपराधिक मामला नहीं रहा है जिसमें कार्यकर्ताओं और नेताओं का हाथ नहीं रहा हो;
हालांकि, इस एक साल समाजवादी पार्टी की सरकार ने कई जनोपयोगी कार्य भी किए हैं; कन्याधन, बेरोजगारी भत्ता, साड.ी कंबल विरतरण के अलावा लैपटॉप बांटने की योजना का षुभारंभ कर लोगों को फायदा पहुंचाया गया है; मुफ्त सिंचाई की व्यवस्था और कर्ज माफी की योजना अच्छी हैं; एक कहावत है कि भोजन कितना ही अच्छा क्यों न हो यदि दातों तले कंकड. आ जाएं खाने का सारा स्वाद बेकार हो जाता है; यही हाल सपा सरकार की तमाम योजनाओं का है;
यदि अखिलेष को एक लोकप्रिय नेता होना है और मुलायम को दिल्ली में स्वीकार्य राजनीति करनी है तो अपने जाति के नेताओं और कार्यकर्ताओं पर सख्त लगाम लगाना होगा यही नहीं जाति आधारित और अल्पसंख्यक वोट की राजनीति को भी त्यागना होगा; यदि ऐसा नहीं करते हैं तो दिल्ली मुलायम के लिए दूर होगी; 

छवि गढ़ने में नाकाम रहे पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया मामले में घूस लेने के दोषी हैं या नहीं यह तो न्यायालय...