January 11, 2010

क्यों जाते हैं भारतीय छात्र ऑस्ट्रेलिया

अभी नितिन गर्ग की चिता की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि ऑस्टे्रलिया में फिर एक भारतीय युवक जसप्रीत सिंह (29) को निशाना बनाया गया। इस बार ऑस्ट्रेलियाइयों ने तो सारी हदें पार करते हुए उस युवक को जिंदा जलाने का प्रयास किया। इस हमले में वह 20 फीसदी तक जल गया। इस कृत्य को ऑस्ट्रेलिया सरकार की विफलता माना जाए या वहां के निवासियों की दरिंदगी अथवा इसे ऑस्ट्रेलिया की सभ्यता और संस्कृति ही मान लिया जाए। यह एक बहस का मुद्दा है। वर्ष 2009 में भारतीय छात्रों पर हमले की करीब 100 घटनाएं हो चुकी हैं।



क्या इसके लिए भारत की केंद्र सरकार और भारतीय छात्र जिम्मेदार नहीं हैं? अव्वल तो भारतीय छात्रों को ऐसे नस्लीय देशों में जाना ही नहीं चाहिए। जहां के नागरिकों में इंसानियत से कोई सरोकार ही नहीं है। जो छात्र लाखों खर्च करके ऑस्ट्रेलिया में शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं उससे कम पैसे में भारत में भी वही शिक्षा ग्रहण की जा सकती है। अपने देश में भी मेडिकल, आईटी और प्रबंधन की पढ़ाई विदेशी विश्वविद्यालयों और संस्थानों से तनिक भी कम नहीं होती। ऐसा भी नहीं है कि विदेशों से शिक्षा ग्रहण कर लौटे छात्रों को कंपनियां यहां हाथों-हाथ लेती हैं या उनमें अतिरिक्त पेशेवराना कौशल होता है। वैसे इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि विदेश में जाकर पढ़ाई करने के पीछे कुछ छात्र और उनके परिवार दिखावे की ग्रंथी से भी प्रेरित होते हैं। लेकिन, अधिकांश छात्र भारत की आईटी, प्रबंधन और मेडिकल संस्थानों में आरक्षण व्यवस्था की मार से ही विदेशों में जाने को विवश हैं और अपनी जान गवां रहे हैं। चूँकि यहां इन संस्थानों में कोटा निर्धारित है। जिससे बहुत से छात्र उच्च शिक्षा ग्रहण करने से वंचित हो जाते हैं। ऐसे में उन्हें विदेशों में उच्च शिक्षा के लिए जाना पड़ता है। यदि सरकार भारी संख्या में उच्च शिक्षण संस्थान देश के हर कोने में खेल देती तो यहां के छात्र विदेशों में अपमानित और हमले के शिकार नहीं होते। दूसरे अपने देश का पैसा विदेशों में नहीं जाता। दरअसल, केंद्र और राज्य सरकारों को अपनी सरकार चलाने के अलावा इस ओर सोचने का मौका ही नहीं मिलता।

भारत को आजादी मिलने से कुछ साल पहले ही जापान को बर्बाद कर दिया गया था लेकिन आज वही जापान भारत और विश्व के अन्य देशों से विकास और अपने नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने में दशकों आगे है। इसके पीछे उनकी ईमानदार और दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति ही है। ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई करना अपेक्षाकृत सस्ता है। लेकिन पढ़ाई के साथ सुरक्षा कारणों को भी ध्यान रखना होगा। ऑस्ट्रेलिया से बेहतर पढ़ाई न्यूजीलैंड, शिंगापुर, मॉरिशस सहित कई दूसरे पश्चिमी देशों में होती है। हालांकि, ऑस्ट्रेलिया में बीजा नियमों में ढील दी जाती है इसलिए भी भारतीय सहित अन्य दूसरे देशों के छात्र वहां जाकर पढ़ाई करना पसंद करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक दूसरे देशों से आने वाले छात्र ऑस्ट्रेलिया की अर्थव्यवस्था में 13 अरब डॉलर का योगदान देते हैं। लगातार हो रहे हमलों से आने वाले समय में भारतीय छात्रों की ऑस्ट्रेलिया जाने की दर पचास फीसदी तक कम होगी। जिससे ऑस्ट्रेलिया को करीब 7 करोड़ डालर का नुकसान होगा।

विदेशों में भारतीयों की दुर्दशा के लिए भारत सरकार भी कम दोषी नहीं है। जब ऑस्ट्रेलिया में भारतीय छात्रों पर छोटे-मोटे हमले हो रहे थे तो उस समय हमारी सरकार सोई हुई थी। यदि उस दौरान ही सरकार कड़ा रुख अपनाती तो शायद आज कई घरों का चिराग बूझने से बच गया होता। लेकिन यह तो भारत की सरकार है जब समस्या विकराल रूप धारण कर लेती है तब उसकी तंद्रा टूटती है। छात्रों पर हमले होते रहे हमारे देश के नेता जी लोग चुप रहे।


ऑस्ट्रेलिया में अधिकतर भारतीय छात्र पढ़ाई के साथ पार्ट टाइम जॉब करते हैं या टैक्सी चलाते हैं। छात्रों की अक्सर वहां टैçक्सयों को निशाना बनाया जाता रहा है। यही नहीं वे कंपनियों में वहां के स्थानीय युवकों की अपेक्षा कम पैसे में काम करने को तैयार हो जाते हैं। यही वजह है कि कंपनियां भारतीय छात्रों को ज्यादा पसंद करती हैं। दूसरे भारतीय छात्र अपने काम के प्रति ईमानदार होते हैं। जबकि, ऑस्ट्रेलियाई छात्रों में यह गुण कम पाया जाता है। ऐसे में ऑस्ट्रेलियाई युवक भारतीयों से जलते हैं। उनको लगता है कि भारतीय उनके अवसरों पर कब्ज कर रहे हैं।

क्या हमारी सरकार की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वह अपने नागरिकों को वेहतर सुविधाएं और छात्रों को उच्च शिक्षण संसथान उपलब्ध कराए। ताकि विदेशों में जान गवांने या जान जाने की नौबत ही न आए।

1 comment:

  1. निश्चित ही इस दिशा में चिन्तन की दरकार है.

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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

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