January 15, 2010

तो क्या वाकई अमर मुलायम के कुनबाई मोह का विरोध कर रहे हैं?

उत्तरप्रदेश में सपा निश्चित तौर पर और कमजोर होगी
अमर भी नुकसान में रहेंगें
तो क्या अपने कुनबे के मोह में मुलायम सिंह यादव अमरसिंह के समाजवादी पार्टी के लिए किए गए योगदान को भूला देंगे? तो क्या वाकई अमर मुलायम के कुनबाई मोह का विरोध कर रहे हैं? या कुछ और खेल है।  जिस सपा और उसके मुखिया मुलायम के लिए अमर सिंह को भारतीय राजनीति का दलाल तक कह दिया गया। क्या उन्हें भुला पाना मुलायम के लिए आसान है। बेशक, मुलायम के भाई रामगोपाल यादव आज अमर की औकातं की बात कर रहे हों और उनकी हैसियत गांव के प्रधानी का चुनाव जीतने भर भी नहीं आंक रहे हों। लेकिन, इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि अमर सिंह ने ही सपा को औद्योगिक घरानों से जोड़कर आर्थिक रूप से समृद्ध किया। क्योंकि, सरकार चलाने के बाद भी सपा की माली हालत ठीक नहीं थी। अमर सिंह ने जिस भाई-भतीजावादी मुद्दे पर पार्टी से बगावती तेवर अपनाया है वह भारतीय राजनीति के लिए शुभ संकेत है। वैसे मुलायम और अमर को एक दूसरे की जरूरत है। अलग होने से मुलायम और अमर दोनों को नुकसान ही होगा।
हालांकि, अमर सिंह के लिए मुलायम ने पार्टी के कई संस्थापक सिपहसलारों को खोया है। लेकिन लोहिया के समाजवाद की बात करने वाले मुलायम जिस तरह से अपने कुनबे के मोह में फंसते जा रहे हैं। वह समाजवादी पार्टी के जनाधार को और कमजोर ही करेगा। केवल जातिवाद और मुस्लिमप्रस्त राजनीति करके सत्ता शीर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता है। आज यादव और मुस्लिमों की पार्टी की छवि से बाहर निकल कर सपा समाज के लगभग सभी वर्गों में पैठ बना रही है तो इसके पीछे निश्चित तौर पर अमरसिंह का ही हाथ है। अमरसिंह ने सपा से न केवल राजपूतों को जोड़ा बल्कि अन्य सवर्ण जातियों को भी सपा में खींच लाने में कामयाबी हासिल की। जब भाजपा को ही उत्तरप्रदेश में सभी सवर्ण जातियां अपना दल मानती थीं वैसे माहौल में अमर सिंह ने क्षत्रियों और अन्य को सपा से जोड़कर भाजपा को कमजोर किया था। यही वजह है कि आज भाजपा उत्तरप्रदेश में चौथे स्थान पर पहुंच गई है।


दूसरी तरफ आज भी अमर सिंह की दिल्ली और पूरे राष्ट्रीय स्तर पर मुलायम और उनके प्रोफेसर भाई से ज्यादा स्वीकार्यता है। विदेशी नेताओं से भी अमर के अच्छे संबंध हैं। राष्ट्रीय राजनीति में मुलायम को असरदार बनाने में अमर सिंह का अहम योगदान रहा है। आज भी राष्ट्रीय राजनीति में अमर सिंह का लगभग सभी दलों के नेताओं से अच्छा संबंध है। अमर सिंह ने मुलायम और पार्टी को आगे बढ़ाने में बहुमूल्य योगदान दिया है। और रामगोपाल और अखिलेश की छवि महज यह है कि दोनों मुलायम के भाई और पुत्र हैं।

सपा से औद्योगिक घरानों और फिल्मी कलाकारों को जोड़ने का काम अमर सिंह ने ही किया था। जब मुलायम सिंह पिछली बार मुख्यमंत्री बने थे तो इसके पीछे भी अमर का ही अमर हाथ था। उस समय सरकार बनने के बाद उत्तरप्रदेश विकास परिषद का गठन कराकर मुलायम सरकार को आर्थिक मजबूती प्रदान किया था। जिसके बल पर ही मुलायम तमाम योजनाएं चला सके थे। हालांकि, फिल्मी कलाकारों से सपा को कोई खास लाभ तो नहीं मिला लेकिन इनके जुड़ने से पार्टी की स्वीकार्यता तो बढ़ी ही है।

दूसरी तरफ, अमर के आने से पहले जब मुलायम पहली बार मुख्यमंत्री बने थे तो उस समय उन्हें यादव और मुसलमानों के अलावा दलितों का भी पर्याप्त समर्थन मिला था। मुलायम की पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और दलितों के नेता की छवि बनी थी। समाज के इन वर्गों में उनकी स्वीकार्यता भी थी। इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन, मायावती के उत्थान के बाद तो दलितों ने न केवल मुलायम और सपा से कन्नी काट लिया बल्कि मुसलमान भी मुलायम का साथ छोड़ने लगे थे, कुछ जुड़े भी थे तो वह आजम और राजब्बर व दूसरे मुस्लिम नेताओं के चलते और कांग्रेस की कमजोर स्थिति और भाजपा को रोकने के लिए ही। लेकिन, अमर सिंह के सपा में अवतार के बाद से राजपूतों का झुकाव सपा की तरफ हुआ और उन्होंने दलितों की रिक्ति को कम करके सपा को मजबूत किया।

 अमर सिंह जिस मुद्दे को लेकर पार्टी से नाता तोड़ने वाले हैं वह मुद्दा स्वागत योग्य है। हालांकि पर्दे के पीछे और मुद्दे हैं जो दिखाई नहीं पड़ते। अगर अमर सिंह मुलायम के कुनबे के बढ़ते दबदबे का विरोध कर रहे हैं तो यह सही कदम है। कोई भी पार्टी एक व्यक्ति की पारिवारिक पार्टी नहीं हो सकती है। लेकिन, भारतीय राजनीति का यह दुर्भाग्य है कि भारतीय जनता पार्टी और वामदलों को छोड़कर कांग्रेस सहित तमाम छोटे-बड़े दल भाई भतीजावाद और कुनबाई मानसिकता से ग्रसित हैं। इन दलों में सभी महत्वपूर्ण पदों पर एक ही परिवार के सदस्य या उनके दूर तक के रिश्तेदार काबिज हैं। ऐसे में अमर सिंह का मुलायम के भाई, पुत्र और बहू के मोह का विरोध करना और पार्टी तक छोड़ने की बात कहना सुकून पहुंचाता है।


दूसरी तरफ मुलायम का दौर अब अस्ताचल की ओर जा रहा है। अब उनकी, पार्टी में अंतिम राय नहीं हो सकती। अपने कुनबे के सामने झुकना उनकी मजबूरी होगी। यदि रामगोपाल और अखिलेश अमर के खिलाफ कुछ बोल रहे हैं तो इसके पीछे कहीं न कहीं मुलायम का ही हाथ है। लेकिन रामगोपाल और अखिलेश यादव को यह याद रखना होगा कि अमर के जाते ही सपा और कमजोर होगी। अमर के चलते जो लोग सपा से जुड़े थे वे लोग भी बॉय बोलने में देर नहीं लगाएंगे और इसका सीधा फायदा भाजपा को मिलेगा और उत्तरप्रदेश की राजनीति में सपा फिर कभी मजबूत नहीं हो सकती।


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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

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