February 9, 2010

राहुल का मुम्बई दौरा बचकाना जिद से ज्यादा कुछ नहीं था


देश में बढ़ता भाषाई नफरत कांग्रेस की ही देन है

शिवसेना शाहरुख विवाद के पीछे की राजनीति को समझना होगा



पिछले दिनों राहुल गांधी के महाराष्ट्र दौरे को मीडिया में जमकर बेचा गया। मानो राहुल गांधी महाराष्ट्र का दौरा कर उत्तर भारतीयों के लिए सुरक्षा कवच प्रदान कर आए हों या यों कहें कि वहां सांप्रदायिक सौहार्द की नींव ही मजबूत कर आए हों। पांच फरवरी को पूरे चार घंटे तक और उसके बाद भी मीडिया के पास राहुल दौरा के अलावा कोई दूसरा समाचार ही नहीं था। क्या राहुल का मुम्बई दौरा वास्तव में उल्लेखनीय था? क्या इससे महाराष्ट्र की जनता को कुछ हासिल हो पाया? अथवा महाराष्ट्र में राज ठाकरे और शिव सेना के कार्यकर्ताओं द्वारा सताए जा रहे लोगों के जख्म पर थोड़ा बहुत भी मरहम लग पाया? सच तो यह है कि राहुल का दौरा छोटे बच्चों के जिद के अलावा और कुछ था ही नहीं। उनके दौरे से सरकारी काम काज ही प्रभावित हुआ। क्योंकि, प्रदेश के मुख्यमन्त्री सहित पूरा प्रशासनिक अमला राहुल के सुरक्षा में ही लगा रहा। इससे आम आदमी को हुई परेशानी का किसे एहसास है? क्या कांग्रेस की प्रदेश सरकार और राहुल गांधी यह सुनिश्चित करेंगे कि उनके दौरे के बाद वहां उत्तर भारतीयों पर हमले नहीं होंगे? निश्चित तौर पर इसका जवाब ना में है क्योंकि, राज ठाकरे भी तो कांग्रेस के मूक समर्थन से पुष्पित पल्लवित हुए हैं।


महाराष्ट्र में उत्तर भारतीयों पर हो रहे हमलों के लिए शुद्ध रूप से कांग्रेस की अदूरदर्शी नीतियां ही जिम्मेदार हैं। दरअसल, नेहरू जी ने भाषा को राज्यों के गठन का आधार मान कर भविष्य के लिए विष वृक्ष लगा दिया था। जिसका जहरीला फल आज भी महाराष्ट्र सरीखे अन्य राज्यों में हिन्दी भाषियों को खाना पड़ रहा है। महाराष्ट्र में दो दशक से कांग्रेस की सरकार है और इन्हीं दो दशकों में बिहार, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और उत्तर भारत के अन्य राज्यों के निवासियों पर वहां हमले किए गए। कांग्रेस राज की पुलिस तमाशबीन की तरह उत्तर भारतीयों को पीटते देखती रही। लेकिन, कार्रवाई के नाम पर केवल मीडिया में बयान जारी करके सरकार ने अपना कर्त्तव्य पूरा कर लिया।

जिस तरह से राहुल गांधी के दौरे को लेकर फुलप्रुफ सुरक्षा व्यवस्था खड़ा किया गया था यदि इसके थोड़े हिस्से को भी उत्तर भारतीयों के सुरक्षा में लगा दिया गया होता तो उत्तर प्रदेश और बिहार के लोग नहीं पीटे गए होते और न ही राज ठाकरे के गुण्डों को अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने का मौका मिला होता।



दूसरी तरफ, शाहरुख खान ने भी क्या सामयिक मौका तलाशा। उनकी फिल्म जल्द ही रिलीज होने वाली है। उस फिल्म के प्रचार के लिए कितना शानदार मुद्दा तलाश लिया। क्रिकेट के बहाने ही उन्होंने बयान देकर उस पर प्रतिक्रिया के लिए शिव सेना को प्रेरित किया। महाराष्ट्र में जो कुछ भी बवाल हुआ वह सब उनकी गैर मौजूदगी में ही हुआ। उनके स्वदेश लौटते ही सारा विवाद शान्त हो गया। दोनों तरफ से कोई उत्तेजक बयान नहीं आए। पर्दे के पीछे कहीं कोई और बात तो नहीं छिपी है! इस राज को समझना कोई कठिन नहीं है। शाहरुख खान और बाल ठाकरे दोनों ही कलाकार हैं। फर्क इतना ही है कि बाल ठाकरे आज राजनीति के शीर्ष से ढलान पर आ गए हैं जबकि, शाहरुख फिल्मी दुनिया के शीर्ष पर अभी भी काबिज हैं। शाहरुख जानते हैं कि कौन सी चाल उनकी फिल्म के लिए रामबाण हो सकती है। और यही हुआ बैठे बिठाए ही उनकी नई फिल्म का जमकर प्रमोशन हो गया। रिलीज होने से पहले ही उनकी फिल्म सुर्खियां बटोर चुकी है। खबरों के मुताबिक पाकिस्तान में उनकी फिल्म का अवैध सीडी कारोबार लगभग एक अरब केआसपास पहुंच गया है।


दूसरी तरफ, ठाकरे परिवार को उनकी औकात बताने के लिए राहुल गांधी को मुम्बई जाना पड़ाता है। क्या यह केवल ठाकरे के बयान से उपजा विवाद भर ही है या बिहार में होने वाले विधानसभा चुनाव की राहुल की तैयारी है। क्या कांग्रेस की दोहरी चाल को लोग नही समझ पा रहे हैं? उस समय राहुल कहां थे जब बिहार और उत्तरप्र देश के छात्र मुम्बई रेलवे स्टेशन पर दौड़ा दौड़ा क र पीटे जा रहे थे। उसे समय राहुल राज ठाकरे को औकात बताने क्यों नहीं गए?



2 comments:

  1. चुटकी
    देखिये आप की बात मेरे समझ में नहीं आई
    आज देश में लाखों स्कुल ,कालेज संस्थान योजनायें गाँधी परिवार के नाम पर हैं
    ये लोग देश के माई बाप हैं जो चाहे कर सकते हैं
    मै आप की बात क्यों मानु आपके नाम पर एको कालेज ह का?

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  2. राहुल गाँधी इस मामले को भुनाने का मौका कैसे छोड़ देते?सभी अपनी अपनी राजनीती खेल रहे है,जनता मूर्ख है जो कुछ समझ नहीं पा रही...

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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

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