February 17, 2010

इन सिरफिरे माओवादियों को बेरहमी से कुचलना होगा

ये सभ्य  समाज में रहने लायक नहीं हैं

पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के सिल्दा में 14 ईस्टर्न फ्रंटियर रायफल्स के बेस कैंप पर माओवादियों ने हमला कर अपने रक्तपिपासु और बर्बर जमीर को ही साबित किया है। जिस तरह से इन वामपन्थी आतंकवादियों ने 24 जवानों को मार डाला और इनमें नौ को ज़िन्दा जला डाला इससे तो यही प्रमाणित होता है कि ये निश्चित तौर पर मानसिक और भावनात्मक रूप से पागल हो चुके हैं। आखिर शहीद हुए इन 24 जवानों ने इनका क्या बिगाड़ा था? ये जवान तो अपनी ड्यूटी कर रहे थे। इनका न तो किसी से दोस्ती थी और न ही दुश्मनी। दूसरी तरफ, इन जवानों की शहादत के लिए सीधे केन्द्र सरकार की ढुलमुल नीतियां ही जिम्मेदार हैं। केन्द्र सरकार अपने नफे-नुकसान को सामने रख कर इनके विरुद्ध कार्रवाई करना चाह रही है। कब तक इन इंसानी भेरियों के भेंट चढ़ते रहेंगे हमारे जवान। इन पागलों के खिलाफ अब सख्त से सख्त कार्रवाई करना ही एकमात्र विकल्प है।

सोमवार को शाम 5.30 बजे अर्धसैनिक  बलों के कैंप पर कायरों की तरह जवानों पर हमला करने वाले ये कथित माओवादी या नक्सली किसी भी तरह से क्षमा या सहानुभूति के पात्र नहीं है। जो लोग इनसे सहानुभूति रखते हैं उन्हें न तो सभ्य समाज से मतलब है और न ही लोकतान्त्रिक मूल्यों में तनिक भी विश्वास है। उधर, माओवादी किशन ने हमले की जिम्मेदारी लेते हुए कहा है कि यह चिदंबरम के ऑपरेशन ग्रीन हंट का जवाब है। किशन का जवाब कितना हास्यास्पद और बचकाना है। गृहमन्त्री चिदंबरम कोई अपना व्यक्तिगत मिशन नहीं चला रहे हैं। यह तो केन्द्र सरकार की कार्रवाई है। जो देश में आतंक फैलाने वाले किसी के भी विरुद्ध कार्रवाई कर देशवासियों को सुरक्षा का वातावरण मुहैया कराने के लिए जिम्मेदार है। ये माओवादी इससे पहले भी महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, झारखण्ड, बिहार और आंध्रप्रदेश में सुरक्षा बलों और पुलिस वालों की जान ले चुके हैं। सोमवार का हमला अक्षम्य  है। क्योंकि ये जवान भी तो किसी के बेटे, भाई, पिता और पति हैं। क्या इन शहीद हुए जवानों के परिजन कभी इन्हें माफ कर सकते हैं। शायद कभी नहीं।

कहने को तो ये माओवादी भेदभावपूर्ण व्यवस्था के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। लेकिन, इन्हें किसी व्यवस्था से कोई मतलब नहीं है। जिन क्षेत्रों में ये सक्रिय हैं वहां के लोगों को आतंक के बल पर अपना समर्थक बनाए हुए हैं। लोगों से जबरदस्ती लेवी के रूप में धन की उगाही किस बात का संकेत है। लोगों पर अपना कथित कानून थोपना तालिबानी मानसिकता का ही तो द्योतक है।

दरअसल, माओवाद या नक्सलवाद के ये कथित लंबरदार मूल उद्देश्यों से भटके हुए हैं। जिनका उद्देश्य महज धन उगाही, मारकाट और अपना काला कानून गरीबों पर थोपना भर है। नही तो नक्सली आन्दोलन आज अपने अंजाम को प्राप्त कर लिया होता है। क्योंकि, भू आन्दोलन के रूप में शुरू हुआ नक्सली आन्दोलन इस तरह रक्तपिपासु आन्दोलन में तब्दील नही हो सकता था। कई वामपन्थी पार्टियों  ने इस तरह के खून खराबे को बर्बर और घृणित बताया है।

राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाना और पुलिस से हथियार छिनने के पीछे इनका मकसद अपनी समानान्तर सत्ता कायम करना है। दरअसल, ये सिरफिरे वामपन्थी आतंकवादी इन गतिविधियों को करके जनता में अपना खौफ पैदा करते हैं। ताकि, लोग इनका विरोध न कर सकें। हालांकि, लोगों में अपनी इमेज बनाने और सहानुभूति हासिल करने के लिए बिहार के जहांनाबाद आदि क्षेत्रों में माओवादियों ने सड़क बनवाया है। तो बड़ी संख्या में रेलवे ट्रैक, पुल और सड़क तथा मोबाइल टावरों को ध्वस्त कर दिया है। इससे परेशानी तो आम जनता को ही होती है। सरकार इन बुनियादी सुविधाओं को जनता के पैसों से ही तो मुहैया कराती है।

वैसे, ये कथित माओवादी नेपाल की तरह यहां भी अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहते हैं। लेकिन, यह भूल जाते हैं कि भारत में लाल गलियारा का ख्वाब कभी पूरा नहीं हो सकता। नेपाल से कन्याकुमारी तक के लाल गलियारा की सोच कभी मूर्त रूप नहीं ले सकेगी। क्योंकि, भारत की सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक स्थितियां नेपाल से भिन्न हैं। रही बात नेपाल की तो वहां राजा ज्ञानेन्द्र अपनी करनी से ही पदच्युत हुए हैं। यदि पूर्व राजा विरेन्द्र विक्रम रहे होते तो माओवादी नेपाल में भी कभी सिर नहीं उठा पाते। फिलहाल, नेपाल के माओवादी जिस तरह सत्ता में वापसी के लिए बौखला रहे हैं उसी तरह भारत में भी कुछ कुंठित माओवादी सत्ता सुख भोगना चाहते हैं।



अब समय आ गया है कि सभी राजनीतिक पाटिüयां क्षेत्रीय आकांक्षाओं से ऊपर उठ कर इन रक्तपिपासु, सिरफिरे और कुंठित कथित माओवादियों के विरुद्ध कार्रवाई करने में केन्द्र सरकार का सहयोग करें। दूसरी तरफ, केन्द्र सरकार को संविधान में यह अधिकार प्राप्त है कि देश की अखण्डता और देशवासियों को भयमुक्त वातावरण उपलब्ध कराने के लिए कोई भी कदम उठाए। माओवादियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के लिए केन्द्र सरकार को अब राज्य सरकारों का भरोसा छोड़ना होगा। क्योंकि, अब पानी सिर से ऊपर उठ चुका है।





4 comments:

  1. बहुत बदिया प्रस्तुति

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  2. बहुत बदिया प्रस्तुति

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  3. आखिर हमारी सेना कब काम आएगी....

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  4. शैलेष जी आप सही कह रहे हैं कि पानी सर से उपर उठ गया है। माओवादिता को हर स्तर पक़्र बेनकाब किये जाने की आवश्यकता है साथ ही इसका दमन भी अब अवश्यंभावी हो गया है।

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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

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