April 16, 2010

आईपीएल का खेल की भावना से कोई सरोकार नहीं

आईपीएल की तिलस्म से पर्दा उठना चाहिए

विदेश राज्यमन्त्री और आईपीएल कमिश्नर ललित मोदी के ट्वीट वार ने आईपीएल की सच्चाई पर से धीरे-धीरे पर्दा उठाने लगा है। उम्मीद की जानी चाहिए इसी बहाने आईपीएल का तिलस्म देशवासियों के सामने आएगा। जिससे लोग जान सकें कि क्रिकेट के इस तथाकथित खेल पर पैसा पानी की तरह बहाने वाले फ्रेंचाइजी टीमों के शेयरधारक कौन हैं? क्या आईपीएल में पैसा लगाने वाले वाकई अच्छे लोग हैं। आयकर विभाग ने खोजबीन शुरू तो किया है लेकिन, केन्द्र सरकार को भी स्वतन्त्र जांच एजेंसी से जांच करानी चाहिए।

दरअसल, अपने पहले संस्करण से ही आईपीएल धन वर्षा का नायाब स्त्रोत बन गया है। इससे प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़े लोग मालामाल हो रहे हैं। कुछ खिलाड़ी भी प्रदर्शन कर वाहवाही लूट रहे हैं। लेकिन, क्या वाकई कलात्मक खेल देखने को मिल रहा है। इस मुद्दे पर भी चर्चा होनी चाहिए। दुर्भाग्य से इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।

दूसरी तरफ, शहरों के नाम पर टीमों का नाम तो रख दिया गया है लेकिन टीम में उन शहरों के खिलाड़ी गिनती के भी नहीं हैं। आईपीएल का मैच देखना ही मुझे समय बर्बाद करना लगता है। इस आईपीएल से देश की न तो अस्मिता ही जुड़ी है और नहीं इसका खेल के कलात्मक विधा से ही कोई सरोकार है। आईपीएल का मुख्य उद्देश्य लोगों की भावनाएं भुनाकर सिर्फ पैसा कमाना भर है। अपने उद्देश्य में आईपीएल को गढ़ने वाले पूर्णरूपेण सफल रहे हैं।


कोच्चि टीम को लेकर जो बातें प्रकाश में आ रही हैं। यदि आईपीएल को सही अर्थों में खेल माना जाता है तो इससे खेल भावना दूषित हुई है। अब तो यह भी कहा जाने लगा है कि आईपीएल में माफियाओं का भी पैसा लगा है। समाचारों पर विश्वास करें तो इसमें डी कंपनी का भी परोक्ष पैसा लगा है। यह तो आयकर विभाग के जांच के बाद सामने आ ही जाएगा। यदि यह सही साबित हुआ तो आईपीएल को फ्रेमवर्क करने वालों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जानी चाहिए। नए घटनाक्रम में अहमदाबाद टीम को लेकर जिस तरह से गुजरात के मुख्यमन्त्री का नाम आ रहा है। इससे तो लगता है कि खेल के इस प्रारूप का एक अलग स्वरूप भी है। जो दिख नहीं रहा है। इससे तो सहज ही अन्दाजा लगता है कि आईपीएल का खेल से कोई लेना-देना नहीं है।


प्रवासी भारतीय मामलों के मन्त्री व्यालार रवि ने ठीक ही कहा है कि इण्डियन प्रीमियर लीग एक तरह का महिमामण्डित जुआं है। उन्होंने कहा कि मैं आईपीएल को पसन्द नहीं करता। यह एक महिमामण्डित जुआ है। मैं तो इसे खेल भी नहीं मानता। यह एक दिवसीय या टेस्ट क्रिकेट नहीं है। यही नहीं कई दिग्गज पूर्व खिलाçड़यों ने भी आईपीएल के तौर-तरीकों पर सवाल उठाया है। गौर करें आईपीएल के दूसरे संस्करण में जिस तरह से कोलकाता नाइट राइडर्स टीम के कई कप्तानों की परिकल्पना की गई थी उससे सुनील गावस्कर जैसे महान खिलाड़ी भी नाराजगी जाहिर कर चुके थे। कई ऐसे तरीके आईपीएल में ईजाद किए गए हैं जिससे पूर्व दिग्गज खिलाड़ी इत्तेफाक नहीं रखते। वहीं इस बार जब टीमों के जीतने के बाद जिस तरह से शराब और जश्न का दौर चल रहा है निश्चित तौर शबाब की भागीदारी होगी। इससे क्रिकेट के भद्र स्वरूप का मजाक ही उड़ रहा है।


दूसरी तरफ, यदि ललित मोदी केवल कोच्चि फ्रेंचाइजी के शेयरधारकों का नाम जाहिर कर रहे हैं तो इससे उनकी मंशा पर सवाल उठना स्वाभाविक है। देश वासी सभी टीमों के शेयरधारकों और उन टीमों के असली मालिकों के बारे में जानना चाहेंगे। यह देश को बताया जाना चाहिए कि उनके आय के क्या स्त्रोत हैं। आईपीएल टीमों के मालिक और शेयरधारक यदि दूसरे खेलों पर भी इसी तरह से पैसा लगाते या स्पांसरशिप खरीदते तो देश निश्चित तौर पर दूसरे खेलों में भी अच्छा नाम कमाता और खिलाçड़यों को पारिश्रमिक के लिए हड़ताल नहीं करना पड़ता।

देश में खेल प्रतिभाओं की कमी नहीं है। छोटे कस्बों और गांवों के देशज खिलाçड़यों को इन्तजार है किसी ऐसे आईपीएल का जिससे उनकी प्रतिभा का प्रदर्शन तो ही ही साथ ही देश का नाम भी पूरी दुनिया में खेलों के मामले में आदर के साथ लिया जाए..........

1 comment:

  1. पहली चीज ये जान लिजिये कि लीगस व्यवसायिक मॉडल है..सामाजिक नहीं जो खेल और प्रतिभा के विकास को लेकर चिन्तित रहें.

    दूसरा, प्रतिभा विकास और खेल के लिए खेल मंत्रालय, बी सी सी आई, आदि क्या कर रहे हैं? क्या उनके पास फण्डस की कमी है?

    इन दोनों को आपस में मिलाकर देखना ही सिरे से गलत है.

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आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

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