March 10, 2010

आरक्षण से ही महिलाओं के दुख दूर नहीं हो जाएंगे

जातिवाद की राजनीति करने वालों को मुंहकी  खानी ही थी

पिछड़ों, दलितों और मुस्लिम महिलाओं के लिए कोटे के अन्दर कोटे की पैरोकारी करने वाले कथित लंबरदारों  के विरोध के बावजूद महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का विधेयक राज्यसभा में पास होना वाकई ऐतिहासिक कदम है। लेकिन, इससे महिलाओं के सारे दुख दूर हो जाएंगे ऐसा कुछ होने वाला नहीं है। लेकिन एक उम्मीद तो जगती है। दूसरी तरफ, एक सार्थक विधेयक पर लेफ्ट, राइट और कांग्रेस का एक साथ आना लोकतन्त्र के लिए सुखद है। जो यह बताने के लिए काफी है कि दुनिया में भारतीय लोकतन्त्र की जड़ें कितनी गहरी हो चुकी हैं।

महिलाएं चाहे पिछड़े वर्ग की हों, दलित हों या मुस्लिम समुदाय  की हों अथवा अगड़ी  जातियों से सम्बंधित हों उनकी समस्याएं एक जैसी होती हैं। महिलाओं को आरक्षण के नाम पर बांटना निश्चित तौर पर गलत है। लेकिन, यह बात लालू, मुलायम और शरद यादव को समझ में आए तब न। इन्हें तो लोकतन्त्र में ही विश्वास नहीं है। संसद में जो मर्यादा इन लोगों ने दिखाया उससे देश का हर संभ्रान्त नागरिक दुखी है। लोकतन्त्र में विरोध करने का तरीका होता है। लेकिन, इस तरह का आचरण तनिक भी शोभनीय  नहीं है। ऐसे आचरण करने वाले दलों के नेताओं के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। इन दलों की मान्यता तक समाप्त कर दी जानी चाहिए। इसी से देश में जातिवाद की जड़ें खत्म होंगी।

दूसरी तरफ, मौजूदा स्वरूप में इस विधेयक का विरोध करने का ठोस कारण किसी पार्टी के पास नहीं है। जो दल विरोध कर रहे हैं उसके पीछे उनकी मंशा गलत है। दरअसल, यह दल आरक्षण के आड़ में अपनी रोटी सेंकना चाहते हैं। इन्हें डर है कि अबतक  जो लाभ इन्हें मिलता रहा है। महिलाओं को आरक्षण देने के बाद  नहीं मिलेगा। इनके कुनबे को मिलने वाली मलाई बंट जाएगी।

दरअसल, यादव तिकड़ी  कोटे के अन्दर कोटे की मांग यों ही नहीं कर रही है। इसके पीछे एक गहरी सोच है। जो मण्डल कमीशन की राजनीति से जुड़ी है। इनकी मंशा स्पष्ट तौर पर सामान्य जाति के लोगों को संसद और विधानसभाओं से बाहर करने की है। आरक्षण के अन्दर आरक्षण की व्यवस्था से असल में कम तो सामान्य वर्ग की सीटें ही होंगी। दूसरी तरफ सामान्य आरक्षण से किसी को कोई नुकसान नहीं होगा। हां, इससे यादव तिकड़ी  और अन्य को अपनों को टिकट देने का रास्ता थोड़ा कम हो जाएगा। यही इनके विरोध की वजह है। दूसरी तरफ, सामान्य महिला आरक्षण के विरोध के बहाने ही लालू-मुलायम को अपनी खोई जमीन फिर से हासिल करने का एक रास्ता नज़र आ रहा था। जिसमें वे कामयाब नहीं हो सके। मुलायम और लालू मुस्लिमों को रिझाने के लिए ही सारी कवायद कर रहे थे। वह जानते हैं कि अब भाजपा का हौव्वा खड़ा कर मुस्लिमों को अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर सकते। क्योंकि, मुस्लिम मतदाता इनकी नीयत को भांप चुका है। कांग्रेस की तरफ मुस्लिमों का झुकाव इन्हें रास नहीं आ रहा है।

ध्यान रहे जब दो तिहाई बहुमत से राज्य सभा में विधेयक  पास हो गया तो नजमा हेपतुल्ला कितनी खुश थीं। वह भी तो मुस्लिम ही हैं। उन्हें तो इससे तनिक भी ऐतराज नहीं है। दूसरी तरफ, आरक्षण में मुस्लिम महिलाओं के लिए किसी मुस्लिम बुद्धिजीवी  ने मांग नहीं की थी। तो क्या वजह है कि सर्वाधिक हितैषी मुलायम और लालू-शरद ही हैं। दरअसल, ये लोग अपनों के अलावा कभी सर्वसमाज  के बारे में सोच ही नहीं सकते। यह भूल जाते हैं कि कभी जाति की राजनीति को आधार बनाकर कभी भी सत्ता शीर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता। उत्तर प्रदेश में मायावती ने जैसे ही तिलक तराजू की बात त्यागीं वैसे ही प्रचण्ड बहुमत से जीतीं। क्या कभी मायावती दलित की राजनीति करके पूर्ण बहुमत से सत्ता में आईं होतीं। यह बात जितनी जल्द लालू मुलायम शरद जैसे जातिवाद फैलाने वाले समझ जाएं उतना ही अच्छा है।

विधेयक पास होने के बाद उम्मीद की जानी चाहिए कि संसद या विधानसभाओं में वैसी महिलाएं चुनकर आएंगी जिन्हें पता हो कि उनका दायित्व क्या है? ऐसा न हो कि चुनाव तो जीत जाएं लेकिन उनका रिमोट किसी और के हाथ में हो। जैसा कि पंचायतों में हो रहा है। सोनिया, सुषमा स्वराज,  शीला, मायावती, बिन्दा करात सरीखे महिला नेताओं की देश को जरूरत है। फिलहाल, जो महिलाएं लोकसभा या राज्य सभा में है वे अधिकतर पुरुष नेताओं से ज्यादे  शिक्षित और पेशेवर हैं। ऐसी महिलाएं चुनकर आएं तो निश्चित तौर पर हमारा लोकतन्त्र सही अर्थों में सफल हो जाएगा। लेकिन इसकी उम्मीद कम है.





2 comments:

  1. बदलाव रातो -रात तो नहीं आएगा पर यह सही पहल है. समाज की आधी आबादी को आप यूं नहीं हांके रह सकते सदियों सदियों. महिलाओं व दलितों की सामाजिक स्थिति को मैं बहुत भिन्न नहीं मानता. यही हालत मुस्लिम समाज की है आज. उम्मीद है आने वाले समय में इस तरफ भी वोट की नज़र के अलावा ध्यान दिया जाएगा.

    ReplyDelete
  2. mahilaon ki bhagidari to badhegi. lekin ek pad sansad pati ka aur srajit ho jayega.

    ReplyDelete

आपने धैर्य के साथ मेरा लेख पढ़ा, इसके लिए आपका आभार। धन्यवाद।

छवि गढ़ने में नाकाम रहे पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम

कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में शुमार पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम आईएनएक्स मीडिया मामले में घूस लेने के दोषी हैं या नहीं यह तो न्यायालय...